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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 175 करूँगा। इस व्रत की प्रतिज्ञा तीन करण (करना, करवाना, अनुमोदन करना) एवं तीन योग (मन, वचन, काया) पूर्वक यावज्जीवन के लिए स्वीकार करता हूँ। हे भगवन् ! मैं अतीत में किये गये प्रणातिपात से निवृत्त होता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ और आत्मा को उससे विरत करता हूँ।' इसका शास्त्रीय नाम सर्वथा प्राणातिपात विरमण व्रत है।33 प्राणातिपातप्राणों का अतिपात (हिंसा), विरमण- निवृत्ति अर्थात सम्यक् ज्ञान और श्रद्धापूर्वक जीव हिंसा न करने का संकल्प करना या हिंसक व्यापार से सर्वथा निवृत्त होना प्राणातिपात विरमणव्रत है। जैन मुनि पाँच महाव्रतों का पालन मन, वचन और काया तथा कृत, कारित और अनुमोदन इन 3x3 नवकोटियों सहित करता है। महाव्रत की प्रतिज्ञा करते समय किसी प्रकार के विकल्प नहीं रखे जाते, जबकि गृहस्थ की अणुव्रत प्रतिज्ञा सविकल्प होती है। श्रमण जीवन में अहिंसा महाव्रत का परिपालन किस प्रकार किया जा सकता है इसका संक्षिप्त वर्णन दशवैकालिकसूत्र में मिलता है।34 इसमें कहा गया है कि संयमी साधु तीन करण एवं तीन योग से पृथ्वी आदि सचित्त मिट्टी के ढेले आदि न तोड़े, सचित्त पृथ्वी पर एवं सचित्त धूलि से भरे हुए आसन पर नहीं बैठे। संयमी साधु सचित्त जल, वर्षा, ओले, बर्फ और ओस के जल को नहीं पीये, किन्तु जो गर्म किया हुआ आदि अचित्त जल है उसे ही ग्रहण करे। किसी अग्नि को प्रज्वलित न करे, छुए नहीं, उत्तेजित न करें और उसको बुझाये भी नहीं। इसी प्रकार किसी प्रकार की हवा नहीं करे तथा गरम पानी, दूध या आहार आदि को फूंक से ठण्डा भी न करे। वृक्षों या उनके फल, फूल, पत्ते आदि को तोड़े नहीं, काटे नहीं, तृणादि पर बैठे नहीं। इसी प्रकार चींटी, मकोड़ा, बिच्छू, गाय, घोड़ा, मनुष्य आदि त्रस-प्राणियों को किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचाये तथा वह हिंसा से बचने हेतु सदैव जागृत रहे। अहिंसा महाव्रत की उपादेयता ____ अहिंसा का मूल आधार समता है। समता से आत्म-साम्य की निर्मल दृष्टि प्राप्त होती है। विश्व में जितनी भी आत्माएँ हैं उन सभी के प्रति समभाव रखना, यह मेरा है यह पराया है इस प्रकार का भेद-भाव समाप्त कर देना, अहिंसा धर्म की एक महान् उपलब्धि है।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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