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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 171 अनुज्ञा भी नहीं देता है तो उसे दण्डिक (राजा) के दृष्टान्त से समझाना चाहिए। जैसे एक राजा अपने राज्य से परिभ्रष्ट हो गया। पुत्र भी उसके साथ था। वे दोनों एक अन्य राजा की सेवा में नियुक्त हो गये। वह राजा राजपुत्र की सेवा से सन्तुष्ट हुआ और उसे राजा बनाने का निर्णय किया। तब क्या पिता उसे राजा बनाने की अनुमति नहीं देगा ? अवश्य देगा। इसी प्रकार तुम्हारा पुत्र यदि महाव्रतरूपी राज्य को प्राप्त करता है तो क्या तुम इसे मान्य नहीं करोगे? इस तरह समझाये जाने पर अनुमति प्रदान करे तो पुत्र की उपस्थापना कर देनी चाहिए। यदि समझाने पर भी अनुज्ञा न दें तो पाँच दिन उपस्थापना रुकवाकर पुनः समझाने का प्रयास किया जाना चाहिए। फिर भी वह अनुमति न दें तो दूसरी बार भी पाँच दिन का विलम्ब कर पुन: समझाने का प्रयत्न करना चाहिए। तदुपरान्त भी न माने तो तीसरी बार भी पाँच दिन रुकना चाहिए। इस तरह तीन बार पाँचपाँच दिन विलम्ब करने पर यदि पिता सूत्राभ्यास आदि से उपस्थापना के योग्य हो गया हो तो दोनों की युगपद् उपस्थापना करनी चाहिए। यदि पिता सुयोग्य न बना हो और पुत्र के लिए अनुमति भी न देता हो तो पुत्र की उपस्थापना कर देनी चाहिए अथवा पिता के स्वभाव के अनुसार आचरण करना चाहिए। जैसे कि पिता मान कषाय वाला हो और यह सोचे कि - मैं पुत्र को नमस्कार क्यों करूँ? तो तीन बार पाँच-पाँच दिन बीतने के उपरान्त भी पुत्र को उपस्थापित नहीं करना चाहिए, क्योंकि मान कषाय पर आघात लगने से वह दीक्षा का त्याग कर सकता है अथवा गुरु या पुत्र के प्रति द्वेषी बन सकता है, धर्मादि अनुष्ठान के कार्य में अरुचि पैदा हो सकती है। अत: जब तक पिता सूत्रादि को चिरपरिचित न कर ले तब तक पुत्र को अनुपस्थापित रखना चाहिए। वृद्ध-परम्परा के अनुसार दो पिता अपने-अपने पुत्र के साथ दीक्षित बने हों, उसमें दोनों पिता उपस्थापना के योग्य बन गये हों, तब तक पुत्र सुयोग्य न बने हों तो दोनों पिताओं को उपस्थापित किया जा सकता है,परन्तु दोनों पुत्र योग्य हों, तब तक पिता सूत्रादि से अभ्यस्त न हुए हों तो उस स्थिति में समझाया जाना चाहिए। यदि वे न समझें तो पूर्ववत विधि करनी चाहिए। इसी तरह यदि राजा और मन्त्री साथ में दीक्षित बने हों तो उनकी उपस्थापना-विधि पिता-पुत्र के समान पूर्ववत जाननी चाहिए। यदि माता-पुत्री या महारानी-मन्त्री पत्नी युगपद् दीक्षित बनी हों तो उनके विषय में भी पूर्वोक्त विधि का अनुकरण करना चाहिए। इसी प्रकार ऋद्धिसम्पन्न दो श्रेष्ठी, दो मन्त्री, दो
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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