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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 169 व्यवहारसूत्र, ,23 व्यवहारभाष्य 24 आदि में प्राप्त होती है । तदनन्तर पंचवस्तुक, 25 विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में परिलक्षित होती है। जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में यह परिपाटी लगभग यथावत रूप से प्रचलित है। हाँ ! अधिकार प्राप्त गुरु का संयोग न मिलने पर कालमर्यादा का अतिक्रमण भी देखा जाता है, क्योंकि खरतरगच्छ आदि कुछ परम्पराओं में बीस वर्ष की दीक्षापर्याय वाला मुनि ही उपस्थापना करने का अधिकारी माना गया है। उपस्थापना व्रतारोपण के लिए मुहूर्त्त विचार गणिविद्या प्रकीर्णक, आचारदिनकर आदि ग्रन्थों के मतानुसार उपस्थापना के लिए तिथि, वार, नक्षत्र, लग्न आदि का विचार प्रव्रज्या विधि के समान ही करना चाहिए। जो तिथि, नक्षत्र, वार, करण, योग, लग्न, निमित्त, शकुन आदि प्रव्रज्या के लिए श्रेष्ठ कहे गये हैं वे नक्षत्रादि उपस्थापना के लिए भी उत्तम जानने चाहिए। यह वर्णन प्रव्रज्या विधि अध्याय-4 में किया जा चुका है। उपस्थापना के लिए प्रयुक्त सामग्री उपस्थापना नन्दिरचना पूर्वक होती है। यदि यह व्रतारोपण संस्कार जिनालय के सभामण्डप में सम्पन्न होता हो तो कदाच नन्दिरचना की जरुरत नहीं भी रहे, पर आजकल उपाश्रय या विशाल प्रांगण आदि में किये जाने से नन्दिरचना होती ही है। अतः नन्दिरचना के लिए जो सामग्री आवश्यक कही गयी है वह सामग्री यहाँ भी अपेक्षित समझनी चाहिए । इस सामग्री सूची के लिए नन्दिरचना विधि अध्याय-3 देखना चाहिए। उपस्थापना (छेदोपस्थापनीय) चारित्र का फल चारित्र के पंचविध प्रकारों में उपस्थापना का द्वितीय स्थान है। उत्तराध्यनसूत्र (29/62) कहता है कि जीव चारित्र के परिणाम से या चारित्र निष्ठा से शैलेशी भाव को प्राप्त होता है । शैलेशी दशा को प्राप्त करने वाला अनगार चार घाति कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान को समुपलब्ध कराता है। उसके पश्चात वह सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाता है और सब दुःखों का अन्त कर लेता है। वस्तुतः तीर्थङ्करों द्वारा प्रतिपादित सन्मार्ग का यथातथ्य रूप से अनुसरण करने वाला पुरुष सर्वगुणसम्पन्न बन जाता है। इसी क्रम में संयम आराधना का फल बताते हुए उत्तराध्ययनसूत्र (29 / 46 ) में कहा गया है कि सर्वगुणसम्पन्न
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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