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________________ 166...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता ऐसा नहीं है। यद्यपि स्थानकवासी परम्परा में साध्वी छोटी एवं बड़ी दोनों दीक्षाएँ दे सकती हैं। उपस्थापना के योग्य कौन ? उपस्थापना चारित्र किस मुनि को दिया जा सकता है ? इस सम्बन्ध में आचार्य हरिभद्रसूरि कहते हैं कि जो शस्त्रपरिज्ञा (आचारांगसूत्र का प्रथम अध्ययन) और दशवैकालिक आदि सूत्रों का अर्थ सहित अध्ययन कर चुका हो, त्याग,श्रद्धा, संवेगादि गुणों से युक्त हो, धर्मप्रेमी हो, पापभीरु हो तथा सूत्रों को चिर-परिचित एवं अवधारित करने के पश्चात प्रतिषिद्ध का त्याग करता हो वही उपस्थापना के योग्य होता है।19 वह उपस्थापना पृथ्वीकायादि षड्जीवनिकाय की तीन करण एवं तीन योगपूर्वक हिंसादि न करने के त्यागपूर्वक होती है। उपस्थापना के अयोग्य कौन ? । जैनाचार्यों की मान्यतानुसार वह मुनि उपस्थापना के लिए अयोग्य माना गया है जो सूत्रार्थ की दृष्टि से अप्राप्त, अकथित, अनभिगत और अपरीक्षित है।20 अप्राप्त का अर्थ है- जिसने षड्जीवनिकाय का अध्ययन नहीं किया हो। यहाँ ज्ञातव्य है कि प्राचीनकाल में आचारांग के प्रथम अध्ययन ‘शस्त्रपरिज्ञा' को सूत्रत: पढ़ने पर उपस्थापना होती थी। दशवैकालिक की रचना के पश्चात इस सूत्र का चतुर्थ अध्ययन ‘षड्जीवनिकाय' को पढ़ने पर उपस्थापना होती है। ___ अकथित का अर्थ है- जिसने पृथ्वीकायादि जीवों के भेद-प्रभेदों को भलीभाँति नहीं समझा हो या जिसे नहीं समझाया गया हो। अनभिगत का अर्थ है- जिसने आवश्यकसूत्रादि को सुनकर एवं जानकर उन पर श्रद्धा न की हो या उसका तात्त्विक ज्ञान प्राप्त न किया हो। अपरीक्षित का तात्पर्य है- जिसके योग्यता-अयोग्यता की सूत्रोक्त विधिपूर्वक परीक्षा न की गयी हो, चूंकि नव दीक्षित की सूत्र पढ़ाकर, अर्थ बताकर परीक्षा की जाती है कि उसने सम्यक अर्थ ग्रहण किया या नहीं, उस पर श्रद्धा की या नहीं ? तत्पश्चात उसे छह जीवनिकाय की हिंसा न करने का विभागपूर्वक प्रत्याख्यान करवाया जाता है। अतः सम्यक श्रद्धान और सम्यग्ज्ञान से रहित शिष्य उपस्थापना के अयोग्य बतलाया गया हैं। बौद्ध परम्परा (विनयपिटक, पृ. 134-135) में निम्न व्यक्तियों को
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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