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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 163 सामायिकव्रत और पंचमहाव्रत के भिन्न-भिन्न व्रतारोपण के पीछे आचार्य हरिभद्रसूरि ने यह हेतु दिया है कि जब तक नूतन दीक्षित आवश्यकसूत्र और दशवैकालिकसूत्र का तपपूर्वक अध्ययन न कर ले तथा मण्डली का योगोद्वहन न कर ले, तब तक उसकी उपस्थापना नहीं करनी चाहिए। इस कारण सामायिकव्रत यानी छोटी दीक्षा के लिए छह माह की उत्कृष्ट अवधि का भी संविधान है ताकि मुनि जीवन की आचार मर्यादाओं का योग्य प्रशिक्षण प्राप्त कर सके। उपर्युक्त वर्णन से द्विविध व्रतारोपण की पृथक्-पृथक् संहिताएँ समुचित प्रतीत होती हैं। इससे उपस्थापना-विधि की आवश्यकता का भी निर्विरोध प्रतिपादन हो जाता है। यदि द्रव्य लिंग की अपेक्षा अनुशीलन करें तो ज्ञात होता है कि मुनि के लिए वेशधारण करने के साथ-साथ महाव्रतों का आचरण करना भी अत्यन्त आवश्यक है। जैसे जल के बिना केवल खारी मिट्टी से वस्त्र का मैल दूर नहीं होता, उसी प्रकार महाव्रत का पालन किये बिना मात्र केशलोच करने आदि से रागादि कषाय नष्ट नहीं होते हैं। इसी तरह वेशरहित केवल महाव्रत पालन से भी आत्मिक विशुद्धि नहीं होती जैसे- यन्त्र विशेष के द्वारा जब धान के ऊपर का छिलका दूर हो जाता है तभी उसके भीतर की पतली झिल्ली को मूसल से छड़कर दूर किया जाता है, उसी तरह व्रत को प्रकट करने वाले बाह्य लिंगों को स्वीकार कर जब व्यक्ति गृहस्थ जीवन का परित्याग कर देता है तभी व्रतधारण से कषायभाव दूर होते हैं। अत: द्रव्यलिंग पूर्वक व्रताचरण से ही आत्मविशुद्धि होती है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि श्रमण जीवन की आवश्यक चर्याओं का पूर्वाभ्यास करवाने एवं दीक्षित को तद्रूप जीवन जीने का प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से सामायिकव्रत (छोटी दीक्षा) का विधान है तथा श्रमण संस्था में सम्मिलित करने के साथ-साथ सर्वविरति चारित्र का परिशुद्ध पालन करवाने के ध्येय से उपस्थापना (बड़ी दीक्षा) का प्रावधान है। उपस्थापना चारित्र की प्राप्ति का हेतु जैन सिद्धान्तानुसार अनन्तानुबन्धी चतुष्क, अप्रत्याख्यानी चतुष्क, प्रत्याख्यानी चतुष्क और संज्वलन चतुष्क इन सोलह प्रकार के कषायों का क्षयोपशम होने पर उपस्थापना चारित्र की प्राप्ति होती है अर्थात कषायों का
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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