SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 119 सिमटता है, अशुभ का बहिष्कार कर शुभ संस्कारों से जीवनयापन करता है और शुद्धत्व की ओर दृढ़ कदम बढ़ाता है। दीक्षा में साधक अपने आप पर शासन करता है। यदि दीक्षा संस्कार के सम्बन्ध में समीक्षात्मक दृष्टि से विचार किया जाये, तो यह कहा जा सकता है कि जैन-परम्परा में श्रमण संस्था में प्रविष्ट होने का इच्छुक साधक गुरु के समक्ष सर्वप्रथम यह प्रतिज्ञा करता है कि "हे भगवन् ! मैं समत्व भाव को स्वीकार करता हूँ और सम्पूर्ण सावध क्रियाओं का परित्याग करता हूँ। जीवनपर्यन्त इस प्रतिज्ञा का पालन करूँगा। मन-वचन-काया से न तो कोई अशुभ प्रवृत्ति करूँगा, न करवाऊँगा और न करने वाले का अनुमोदन करूँगा।” जैन-विचारणा के अनुसार साधना के दो पक्ष हैं- बाह्य और आभ्यन्तर। समत्व की साधना करना और रागद्वेष की वृत्तियों से ऊपर उठना आभ्यन्तर पक्ष है तथा हिंसक प्रवृत्तियों का त्याग करना साधना का बाह्य पक्ष है। तथ्य यह है कि समभाव की उपलब्धि प्राथमिक है, जबकि सावध व्यापारों से दूर होना द्वितीयक है। यह अनुभूतिपरक सत्य है कि जब तक विचारों में समत्व नहीं आता, तब तक साधक स्वयं को सावध क्रियाओं से भी पूर्णतया निवृत्त नहीं रख सकता। अत: दीक्षित जीवन का मूल आधार समत्व की साधना है। यही वजह है कि दीक्षाव्रत प्रदान करने के लिए 'सामायिक दण्डक' के माध्यम से समभाव की साधना में तटस्थ रहने का संकल्प करवाया जाता है। सन्दर्भ-सूची 1. जिणधम्मो, आचार्य नानेश, पृ. 634 2. दीयते ज्ञानसद्भावः, क्षीयते पशुबन्धनाः। दानाक्ष-परमसंयुक्त:, दीक्षा तेनेह कीर्तिता।। जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 438 3. श्रेयोदानादशिव क्षपणाच्च सतां मतेह दीक्षेति। षोडशकप्रकरण, 12/2 4. दिक्खा मुंडनमेत्थं तं, पुण चित्तस्स होइ विण्णेयं। __ण हि अप्पसंतचित्तो, धम्महिगारी जओ होइ।। पंचाशकप्रकरण, 2/2 5. स्थानांगटीका, पत्र 123
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy