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________________ प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 117 का वर्णन है, किन्तु आचारदिनकर के अनुसार साधु-साध्वियों को वासचूर्ण तथा गृहस्थों को अक्षत डालना चाहिए, ऐसा भी कहा गया है। सुबोधासामाचारी (पृ. 14) के अनुसार वास - अक्षत दोनों का प्रक्षेप करना चाहिए। विधिमार्गप्रपाकार (पृ. 35) के अभिमत से गुरु वासदान और चतुर्विधसंघ अक्षतदान करते हैं। इस प्रकार वास - अक्षत डालने के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न मान्यताएँ रही हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय की वर्तमानकालिक सभी परम्पराओं में साधु-साध्वी वासचूर्ण और श्रावक-श्राविकावर्ग अक्षत का निक्षेपण करते हैं, ऐसा देखा जाता है। वासाभिमन्त्रण की अपेक्षा - पंचवस्तुक (गा. 144 ) के अभिमतानुसार आचार्य द्वारा सूरिमन्त्र या नमस्कारमन्त्र से वासाभिमन्त्रण किया जाना चाहिए, जबकि अन्य ग्रन्थों के अनुसार आचार्य हो तो सूरिमन्त्र द्वारा और उपाध्याय आदि हों तो वर्धमान विद्या द्वारा वास एवं अक्षत को अभिमन्त्रित करना चाहिए । दीक्षा द्वार एवं क्रम की अपेक्षा दीक्षा विधि से सम्बन्धित प्रामाणिक ग्रन्थों में दीक्षा - विधि के क्रम एवं दीक्षा दान के चरणों को लेकर भी भिन्नताएँ हैं। सुबोधासामाचारी (पृ. 14) एवं विधिमार्गप्रपा में दीक्षा-विधि के आठ द्वार (चरण) वर्णित हैं। तिलकाचार्यकृत सामाचारी (पृ. 22 ) में ग्यारह चरणों का उल्लेख है तथा आचारदिनकर (पृ. 78) में बारह चरणों का निर्देश है। पूर्वोक्त ग्रन्थों में दीक्षा अनुष्ठान के क्रम को लेकर भी पारस्परिक विविधताएँ हैं एतदर्थ मूलपाठ निम्न रूप से द्रष्टव्य है सुबोधासामाचारी और विधिमार्गप्रपा के अनुसार दीक्षा विधि क्रम का मूलपाठ निम्न है चीवंदण' वेसप्पण', समइय उस्सग्ग' सामाइय तियकड्डूण, तिपयाहिण' तिलकाचार्यकृत सामाचारी का मूलपाठ यह है वास' क्खेवो वेसो वीबं, रयहरणं वासप्पण' भट्ठाउ, 7 सामाइय' पया' हिनाम ' ' अणुसट्ठी 1 ।। आचारदिनकर में दीक्षाद्वार विषयक यह गाथा दी गयी है। पुच्छा' वासे' चिइ' वेस', वंदणु' स्सग्र्ग' लग्ग अट्टति । समइ अतिय' तिपयाहिणं, वंद गुस्सेग्ग' । - 9 11 उस्सग्गो नाम 10 अणुसट्ठी 1 ।। लग्ग वास — अट्ठगहो । उस्सग्गो ।।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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