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________________ 104...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... ग्रस्त न बने, मुश्किल है। व्यक्ति की वेश-भूषा उसके स्वयं के मन को तो प्रभावित करती ही है साथ में बाह्य वातावरण को भी प्रभावित करती है। अत: वेशभूषा सात्विक और सभ्य होनी चाहिए। __ आचार्य हरिभद्रसूरिजी ने जैन श्रावक का एक आवश्यक गुण बतलाते हुए कहा है कि वह उत्तेजना पैदा करने वाली वेश-भूषा न पहने। श्रावक की अपेक्षा जैन श्रमण का स्थान अपेक्षाकृत ऊँचा है, उसके लिए सात्विक वेश धारण करना, अधिक प्रासंगिक है। यदि पोशाक सही हो,तो विचार निर्मल और . भावनाएँ पवित्र बनी रहती है। संसार सर्जन और मोक्ष प्राप्ति का आधार मन है। कहा भी है 'परिणामे बन्ध परिणामे मोक्ष'। अतएव मन को निर्दोष एवं निर्विकारी बनाये रखना परमावश्यक है। __वेश परिवर्तन का एक प्रयोजन मुनि होने की स्मृति को सतत बनाये रखना भी है। इस स्मृति के कारण दीक्षित पापाचरण से भयभीत रहता है और आचारविचार को पवित्र बनाये रखने का प्रयत्न करता है। जैन मुनि श्वेत वस्त्र पहनते हैं। श्वेत वर्ण उज्ज्वलता, निर्मलता, शान्तिप्रियता, एकाग्रचित्तता, निर्विकारता का प्रतीक है। इसका तात्पर्य है कि मुनि वेशानुरूप गुणों से युक्त होते हैं तथा उनके सन्निकट आने वाले व्यक्तियों में भी वे गुण विकसित होते हैं। नया नामकरण क्यों किया जाए? नूतन नामकरण करना या नाम परिवर्तन करना, एक विशिष्ट प्रक्रिया है। इसे नामकरण संस्कार कहा जा सकता है। यह ऐसा संस्कार है जिसका सम्बन्ध व्यक्ति की जीवन्तावस्था से लेकर मरणोत्तरकालिक अवस्था पर्यन्त बना रहता है। नाम व्यक्ति के जीवन का अटूट हिस्सा होता है जिसे कदापि अलग नहीं किया जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में नाम का विशेष महत्त्व होता है। प्रायः नामानुरूप बनने की चाह सभी को रहती है। नाम का मोह व्यक्ति को उच्चतम और निम्नतम दोनों स्थितियों में पहँचा देता है। यहाँ नाम परिवर्तन से तात्पर्य जीवन परिवर्तन के साथ आचार-विचार, व्यवहार, वेशभूषा आदि सब कुछ बदल जाना है। नूतन नामकरण के महत्त्व को प्रदर्शित करते हुए आचार्य हरिभद्रसूरि ने इतना तक कहा है कि नामन्यास ही दीक्षान्यास है।91 किसी शिष्य के द्वारा यह
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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