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________________ 98...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... देववन्दन करते समय 8 स्तुतियों का विधान है। इसी तरह स्तुति, स्तवन, चैत्यवन्दन के पाठों को लेकर भी भिन्नता है। तीसरा मतभेद नन्दीपाठ सुनाने के सम्बन्ध में है। खरतरगच्छ आम्नाय में नन्दीसूत्र सुनाने का विधान नहीं है, किन्तु तपागच्छ में देववन्दन विधि के पश्चात एवं रजोहरण प्रदान करने से पूर्व नन्दीसूत्र के रूप में तीन नमस्कारमन्त्र सुनाते हैं।81 ___यहाँ ज्ञातव्य है कि यदि दीक्षाग्राही ने दीक्षा स्वीकार के पूर्व सम्यक्त्वव्रत, बारहव्रत स्वीकार नहीं किये हों, तो दीक्षा विधि की क्रिया के अनन्तर सभी आलापक इस प्रकार बोले जाते हैं- 'सम्मत्तसामाइय-सुयसामाइय-देसविरइसामाइयसव्वविरइसामाइय आरोवणत्थं ......' तथा सर्वविरतिसामायिक व्रत ग्रहण करवाने से पूर्व सम्यक्त्वव्रत दिलाया जाता है, अन्यथा सामायिकव्रत ही स्वीकार करवाते हैं। अचलगच्छ, पायछन्दगच्छ एवं त्रिस्तुतिक इन तीनों परम्पराओं में दीक्षा विधि की क्रिया तपागच्छ आम्नाय के समान ही सम्पन्न होती हैं। अचलगच्छ में लगभग दीक्षाग्राही की परीक्षा-विधि नहीं होती।82 स्थानकवासी एवं तेरापंथी परम्पराओं में दीक्षा संस्कार की क्रिया गुरु के समक्ष होती है। उनमें समवसरण रचना, जिनबिम्बपूजा, प्रदक्षिणा, देववन्दन, वासचूर्ण निक्षेपण, प्रवेदन आदि विधान नहीं होते हैं। सामान्यतया दीक्षार्थी से अरिहन्तादि को वन्दना करवायी जाती है, सकल संघ से क्षमायाचना करवायी जाती है, माता-पिता द्वारा संघ के समक्ष अनुमति दी जाती है, शुभ लग्न में गुरु द्वारा पूर्वोक्त सामायिकपाठ का उच्चारण किया जाता है और दीक्षार्थी उसका अवधारण करता है। इस दिन उसे यथाशक्ति उपवास या अन्य तप करवाते हैं। दिगम्बर परम्परा के अनुसार जो व्यक्ति मुनिधर्म को स्वीकार करना चाहे, वह सर्वप्रथम माता-पितादि पारिवारिक जन की अनुमति प्राप्त करे, फिर विशिष्ट गुणयुक्त आचार्य के समीप आकर दीक्षा प्रदान करने हेतु प्रार्थना करे। फिर गुरु की अनुज्ञा मिलने पर दीक्षा के पूर्व दिन दीक्षार्थी भोजनकाल में भोज्य पात्रों का तिरस्कार करते हुए चैत्यालय में आये। दीक्षा दिन - उसके पश्चात दीक्षा दिन में बृहद् प्रत्याख्यान की प्रतिस्थापना करने के लिए सिद्धयोग भक्ति पढ़े। फिर गुरु के समीप उपवास तप का प्रत्याख्यान ग्रहण करे। फिर आचार्य, शान्ति एवं समाधि इन तीन भक्ति
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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