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________________ 96...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... श्वास के प्रवाह को रोके हुए तीन नमस्कारमन्त्र के स्मरणपूर्वक तीन बार में चोटी (केशराशि) ग्रहण करें। उस समय एक साधु उस केशराशि को अखण्ड वस्त्र में बांधे। आजकल यह केशराशि परिवार के किसी एक सदस्य के द्वारा ग्रहण की जाती है, ऐसा देखने में आता है। सर्वविरति सामायिकव्रत आरोपण - उसके बाद नूतन शिष्य खमासमण सूत्रपूर्वक वन्दन कर गुरु से निवेदन करें - हे भगवन् ! आपकी इच्छा हो तो सर्वविरति सामायिक व्रत के आरोपणार्थ मुझे कायोत्सर्ग करवाइये। उस समय गुरु-शिष्य दोनों ही कायोत्सर्ग में 'लोगस्ससूत्र' का चिन्तन कर, प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। ___ उसके बाद नूतन शिष्य पुनः वन्दन कर सर्वविरति सामायिकसूत्र को उच्चरित करवाने की भावना अभिव्यक्त करें। तब गुर्वानुमतिपूर्वक नूतन शिष्य अर्धावनत मुद्रा में खड़ा रहे तथा गुरु भगवन्त तीन बार नमस्कारमन्त्र और तीन बार सामायिक पाठ का उच्चारण करें। शिष्य उस सूत्रपाठ को मनोयोग पूर्वक अवधारित करें। सर्वविरति सामायिकव्रत का मूलपाठ यह है- करेमि भंते ! सामाइयं सव्वं सावज्ज जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। भावार्थ - हे भगवन् ! मैं सर्वसावध योगों का यावज्जीवन के लिए तीन करण और तीन योगपूर्वक त्याग करता हूँ और सामायिकव्रत की साधना में स्थिर रहने की प्रतिज्ञा करता हूँ। इसके साथ ही गुरु की साक्षीपूर्वक भूतकाल में किये गये सावध कार्यों का प्रतिक्रमण करता हूँ, निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ और अपनी आत्मा को उससे विरत करता हूँ। तदनन्तर गुरु जिनबिम्ब के चरणों पर वासचूर्ण का निक्षेप करें। फिर अक्षतों को अभिमन्त्रित कर उसे चतुर्विध संघ में वितरित करें। प्रवेदन - तदनन्तर नूतन शिष्य गुरु को खमासमणसूत्रपूर्वक सात बार वन्दन करें। • प्रथम खमासमण द्वारा सर्वविरतिसामायिक व्रत को आरोपित करने का निवेदन करें। • दूसरे खमासमण द्वारा ‘सर्वविरति सामायिकव्रत का
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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