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________________ 90... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के ..... निरर्थक मास या अधिक मास का दिन हो, संक्रान्ति हो अथवा क्षयतिथि का दिन हो उस दिन मुमुक्षु को दीक्षा दान न करें। जो आचार्य असमय में दीक्षा दान करता है वह वृद्ध आचार्यों की मान्यता का उल्लंघन करता है अतः ऐसे आचार्य को संघ से बहिष्कृत कर देना चाहिए | 08 68 पूर्वोक्त क्षेत्र आदि की शुद्धि का ध्यान रखते हुए दीक्षा स्वीकार की जाती है तो आत्मा में सामायिकादि के अपूर्व परिणाम प्रकट होते हैं। यदि पूर्वकाल में वे परिणाम प्रकट हो गये हों तो स्थिर बनते हैं । यदि क्षेत्रादि की शुद्धि का विचार नहीं किया जाता है, तो जिनाज्ञा का भंग आदि कई दोष लगते हैं। इस सम्बन्ध में आचार्य हरिभद्रसूरि ने कहा है कि द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव आदि कर्मों के क्षयक्षयोपशम आदि में निमित्त बनते हैं इसलिए प्रत्येक शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए, यह जिनेश्वर भगवन्त की आज्ञा है। 69 दीक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक सामग्री वर्तमान श्वेताम्बर परम्परा में दीक्षा व्रत के लिए निम्न सामग्री अपेक्षित मानी गयी हैं. 1. त्रिगड़ा, 2. चन्दोवा पूठिया, 3. सवा पाँच किलो चावल, 4. पाँच नारियल, 5. चार दीपक, 6. घृत, 7. फल- नैवेद्य - मेवा आदि पाँच-पाँच नग 8. चौमुखी पंचधातु की एक प्रतिमा, 9. स्नात्र पूजा की सम्पूर्ण सामग्री, 10. जिनबिम्ब को आच्छादित करने के लिए दो अंगप्रोञ्छनक (अंगलूहणे), 11. स्थापनाचार्य, 12. गुरु महाराज के बैठने हेतु दो - तीन पट्टा, 13. स्वस्तिक बनाने के लिए पाँच छोटे पट्टे, 14. पूजा के वस्त्रों में एक व्यक्ति, 15. दीक्षाग्राही के लिए नया आसन, चरवला एवं मुखवस्त्रिका । दीक्षार्थी साधु के उपकरण - यदि श्रावक की दीक्षा हो तो निम्न उपकरण अनिवार्य माने गये हैं - 1. रजोहरण, 2. निशीथिया (रजोहरण की डण्डी लपेटने का अन्दर का वस्त्र), 3. ऊन का ओघेरिया (रजोहरण की डण्डी लपेटने का ऊपर का वस्त्र), 4. रजोहरण बांधने का डोरा, 5. चन्दन की गोल डण्डी, 6. मुखवस्त्रिका, 7. दंडा, 8. दंडासन, 9. पात्र की जोड़, 10. तिरपनी 11. काचली (काष्ठ या नारियल का लघु पात्र), 12. तिरपनी की डोरी, 13. घड़ा, 14. घड़े की डोरी, 15. पात्र रखने की झोली, 16. पाँच पड़ला (आहार लाते समय पात्र पर ढ़कने
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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