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________________ x...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... समाज के लिए प्रेरणा बन रहे हैं, वह कोई सामान्य स्थान नहीं है। कहते हैं उच्च उड़ान नहीं भर सकते तुच्छ बाहरी चमकीले पर। महत् कर्म के लिए चाहिए महत् प्रेरणा बल भी भीतर।। गांभीर्य मूर्ति, स्वाध्याय प्रेमी, आपकी जीवन संगिनी श्रीमती प्रतिभाजी और आपका असीम पुण्य बल ही जिनशासन की महती प्रभावना में हेतुभूत बन रहा है। आपके सुपुत्र अजित एवं हर्ष झाड़चूर परिवार की सामाजिक एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठा को चार चाँद ही लगा रहे हैं। गुरुवर्या शशिप्रभा श्रीजी म.सा. से झाड़चूर परिवार का जुड़ाव कई दशक पुराना है। स्वाध्याय निमग्ना साध्वी सौम्यगुणा श्रीजी को आप खरतरगच्छ की श्रुत साम्राज्ञी मानते हैं और उनके प्रति विशेष श्रद्धान्वित भी हैं। मुम्बई चातुर्मास के बाद से ही आप उनके अध्ययन कार्य की बराबर जानकारी रखते हैं। आप जैसे श्रावकों की सद्भावनाओं से ही आज यह कार्य सफलता के शिखर पर पहुँच रहा है। आपके इसी प्रेरणास्पद व्यक्तित्व को सज्जनमणि ग्रन्थमाला सलाम करती है क्योंकि आपके व्यक्तित्व में उदारता के साथ सरलता, महानता के साथ लघुता, गांभीर्यता के साथ मधुरता, सम्पन्नता के साथ सहजता का अद्भुत समागम है। इसलिए समुद्र से सीमातीत एवं क्षितिज से कल्पनातीत तत्त्व को आप और निखारते हुए चरम व्यक्तित्व रूप निर्वाण पद को प्राप्त करें यही अंतर भावना।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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