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________________ 48...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के.... • पंचवस्तुक टीका में प्रव्रज्या शब्द की निम्न व्युत्पत्तियाँ की गई हैं___ 1. प्रव्रजनं प्रव्रज्या - प्र इति प्रकर्षण, व्रजनं प्रव्रजनं अर्थात प्रकर्ष रीति से विचरण करना प्रव्रज्या है। 2. मोक्षं प्रति व्रजनं - मोक्ष की ओर गमन करना प्रव्रज्या है। • धर्मसंग्रह के टीकाकार ने पूर्वोक्त अर्थ की पुष्टि करते हुए लिखा है"प्रव्रजनं पापेभ्यः प्रकर्षेण, चरणयोगेषु गमने" अर्थात पाप कार्यों से विमुख होकर चारित्र धर्म की क्रियाओं में प्रकृष्ट रूप से गमन करना प्रव्रज्या है। दीक्षा का एक अर्थ - सत्य की खोज करना है। • आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार जिसके माध्यम से सद्ज्ञान की ज्योति प्रकट होती है, सांसारिक बन्धन क्षीण होते हैं अथवा व्यक्ति को विशिष्ट पद पर नियुक्त किया जाता है, वह दीक्षा है। • आचार्य हरिभद्रसूरि ने दीक्षा की व्याख्या करते हुए कहा है कि कल्याण का दान करने वाली होने से 'दी' और अशिव का क्षय करने वाली होने से 'क्षा'। इस तरह 'दीक्षा' शब्द अशिव का नाशक और कल्याण का प्रापक माना गया है। • पंचाशकप्रकरण में चित्त मुण्डन को दीक्षा कहा है। चित्त मुण्डन से तात्पर्य मिथ्यात्व, क्रोध आदि दोषों को दूर करना है। जिनागम में दस प्रकार के मुण्डन कहे गये हैं - 1-5. पाँच इन्द्रियों के विषयों का त्याग करना, 6. वचनमुण्डन - बिना प्रयोजन कुछ नहीं बोलना, 7. हस्तमुण्डन - हाथ से पापकर्म नहीं करना, 8. पादमुण्डन - अविवेकपूर्वक पैरों को सिकोड़ने, फैलाने आदि व्यापारों का त्याग अथवा पापकर्म के लिए गमन क्रिया का त्याग करना, 9. मनमुण्डन - दुर्विचारों का त्याग करना और 10. शरीरमुण्डन - शरीर की कुचेष्टाओं का त्याग करना। प्रस्तुत प्रसंग में दीक्षा का अर्थ चित्त-मुण्डन और सिर-मुण्डन दोनों से है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने दीक्षा के आठ पर्यायवाची बतलाये हैं। उनके आधार पर दीक्षा के विभिन्न अर्थ और भी किये जा सकते हैं। दीक्षा अर्थ को प्रकट करने वाले वे आठ पर्यायवाची निम्न हैं 91. प्रव्रज्या - पाप से हटकर शुद्ध चारित्र के योग में 'प्र'- विशेष रूप से 'व्रजनम्'-गमन करना प्रव्रज्या है।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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