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________________ उपासकप्रतिमाराधना विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ...437 गया है कि जो व्यक्ति स्वयोग्यता की परीक्षा करके दीक्षित होता है, उसी की दीक्षा परिपूर्ण दीक्षा कहलाती है तथा परिपूर्ण दीक्षा में प्रतिलेखना आदि सामाचारी की अनुपालना आगमों के अनुसार होती है। इस तरह सिद्ध होता है कि यदि योग्यता विकसित हो जाए, तो प्रतिमा के उपरांत दीक्षित हो जाना चाहिए और वह दीक्षा ही सफलता के शिखर पर पहुँचाती है। प्रतिमाओं की मुख्य पृष्ठभूमि? दशाश्रुतस्कन्ध के अनुसार इन प्रतिमाओं का आधार सम्यग्दर्शन और श्रावक के प्रारम्भ के ग्यारहव्रत हैं। इनमें प्रथम प्रतिमा का आधार सम्यग्दर्शन, दूसरी प्रतिमा का आधार पाँच अणुव्रत और तीन गुणव्रत, तीसरी प्रतिमा का आधार सामायिक और देशावगासिक (प्रथम के दो शिक्षाव्रत) तथा चौथी प्रतिमा का आधार प्रतिपूर्ण पौषधोपवास है। शेष प्रतिमाओं में इन्हीं व्रतों का उत्तरोत्तर विकास किया गया है।59 प्रतिमाएँ कौन धारण करता है? जैन मनीषियों के अनुसार जो दीर्घ वर्षों से बारहव्रत का परिपालन कर रहा हो, और जब उसके मन में साधना की तीव्र भावना उत्पन्न हो जाये, तब वह सांसारिक प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर प्रतिमाओं को स्वीकार करता है। प्राय: वे लोग इनका स्वीकार करते हैं___1. जो अपने-आपको मुनि बनने के योग्य नहीं पाते, किन्तु जीवन के अन्तिमकाल में श्रमण जैसा जीवन बिताने के इच्छुक होते हैं 2. जो श्रमणजीवन बिताने का पूर्वाभ्यास करते हैं। जैनागमों में वर्णन आता है कि आनन्द श्रावक ने चौदह वर्षों तक बारहव्रत का सम्यक् आचरण किया। पन्द्रहवें वर्ष के अंतराल में भगवान महावीर के पास उपासक की ग्यारह प्रतिमाएँ स्वीकार की। इनके प्रतिपूर्ण पालन में साढ़े पाँच वर्ष का समय लगा। तत्पश्चात् उसने मारणान्तिक-संलेखना की और अन्त में एक मास का अनशन किया। इस अंश से ऊपर वर्णित प्रतिमा धारण करने सम्बन्धी बात का पूर्ण समर्थन हो जाता है। यहाँ एक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि बारहव्रती श्रावक जब सम्यग्दृष्टि और व्रती होता ही है, तब पहली और दूसरी प्रतिमा में सम्यग्दर्शनी बनने की बात क्यों कही गई? इसका समाधान है कि बारहव्रत
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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