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________________ उपासकप्रतिमाराधना विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ...421 किया जाता है। क्रोध, मान, माया, कर्म और संसार का पृथक्करण करना आभ्यंतर विवेक है तथा गण, शरीर और अनैषणीय आहार का विवेक रखना बाह्य विवेक है। ___4. प्रतिसंलीनता प्रतिमा- आत्म अध्यवसायों को अन्तर्मुखी बनाने का अभ्यास करना प्रतिसंलीनता प्रतिमा है। 5. एकलविहार प्रतिमा- साधना का विशेष प्रयोग करना जैसे-एकाकी विहार करना आदि एकलविहार प्रतिमा है। समाधिप्रतिमा 71, उपधानप्रतिमा 12 + 11 = 23, विवेकप्रतिमा 1, प्रतिसंलीनता प्रतिमा 1, एकलविहार प्रतिमा 1 इस प्रकार कुल 96 प्रतिमाएँ होती है। आत्म साधना के जितने संकल्पबद्ध विशिष्ट प्रयोग हैं, वे सब प्रतिमा की कोटि में गिने जा सकते हैं। जिनकल्प, यथालंद आदि भी साधना के विशिष्ट उपक्रम हैं, किन्तु यहाँ उनकी गणना नहीं की गई है। ये सब विवक्षा सापेक्ष हैं। उपासक प्रतिमाएँ एक अनुचिन्तन जैन धर्म की श्वेताम्बर और दिगम्बर-दोनों ही परम्पराएँ श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ स्वीकार करती हैं। श्वेताम्बर परम्परा के समवायांगसूत्र, दशाश्रुतस्कंधसूत्र' आदि आगमों में एवं दिगम्बर-परम्परा के कषायपाहुड की जयधवलाटीका, रत्नकरण्डकश्रावकाचार आदि में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का सम्यक् प्रतिपादन किया गया है। यद्यपि इनमें नाम, क्रम एवं स्वरूप की अपेक्षा किंचिद् मतभेद इस प्रकार हैश्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में नाम-विषयक मतभेद इन ग्यारह प्रतिमाओं के नामों में मुख्य अन्तर प्रेष्यपरित्याग, अनुमतित्याग एवं श्रमणभूतप्रतिमा को लेकर है। श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार नौवीं प्रतिमा का नाम प्रेष्यपरित्याग है, दसवीं प्रतिमा का नाम उद्दिष्टत्याग और ग्यारहवीं का नाम श्रमणभूतप्रतिमा है,10 जबकि दिगम्बर-परम्परा में 'प्रेष्यपरित्याग' नाम की कोई प्रतिमा नहीं है, इसके स्थान पर 'परिग्रहत्याग' नामक प्रतिमा है। दिगम्बरपरम्परा में दसवीं ‘अनुमतित्याग' प्रतिमा है, जबकि श्वेताम्बर-परम्परा में इस नाम वाली कोई प्रतिमा नहीं है, वहाँ 'उद्दिष्टाहारत्याग' को दसवीं प्रतिमा माना गया है। दिगम्बर-परम्परा में ग्यारहवीं 'उद्दिष्टत्याग' प्रतिमा है, जबकि
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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