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________________ 396... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... प्रतिसूत्रों की समुद्देश और अनुज्ञा विधि मालारोपण विधान के साथ कही जा रही है। जिस प्रकार सात खमासमणपूर्वक प्रथम उपधान पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध की उद्देश विधि कही गई है, उसी प्रकार सात-सात खमासमण पूर्वक समुद्देश एवं अनुज्ञा के नामोच्चारण पूर्वक समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि की जाती है। वह विधि इस प्रकार है-165 समुद्देश (सूत्रों को चिर-परिचित करने की) विधि- सर्वप्रथम मालारोपण के दिन प्रात:काल में पवित्र वस्त्र अलंकार आदि से विभूषित होकर उपधानवाही आचार्य के समीप आएं। फिर नारियल और अक्षत द्वारा अंजलि भरकर प्रतिदिशा में एक-एक नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए समवसरण के चारों ओर तीन प्रदक्षिणा लगाएं। उसके बाद अक्षत एवं नारियल को समवसरण के सम्मुख रख दें। • तदनन्तर गुरू के बाईं ओर खड़े होकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें, विधिपूर्वक वसति का प्रवेदन करें, फिर एक खमासमण देकर निवेदन करें"इच्छा. संदि. भगवन्! पंचमंगल महासुयक्खंध- पडिक्कमणसुयक्खंध भावारिहंतत्थय-ठवणारिहंतत्थय - चउवीसत्थय - नाणत्थय - सिद्धत्थय समुद्देसनिमित्तं मुहपत्ति पडिलेहेमि ?" गुरू कहे- 'पडिलेहेह'। उसके बाद उपधानवाही मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन करें। 1. फिर एक खमासमण देकर निवेदन करें- "इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं पढमंउवहाणं-पंचमंगलमहासुयक्खंधं, बियंउवहाणं पडिक्कमणसुयखंधं, तइयंउवहाणं-भावारिहंतत्थय, चउत्थंउवहाणं-ठवणारिहंतत्थय, पंचमंउवहाणं-चउवीसत्थय, छटुंउवहाणं- नाणस्थय, सत्तमंउवहाणं- सिद्धत्थय समुद्दिसह।" - उपधान योग्य सूत्रों को चिर परिचित करने की अनुमति दीजिए। तब गुरू कहे- 'समुद्दिस्सामो'- उपधान योग्य सभी सूत्रों को चिर-परिचित करने की अनुमति देता हूँ। 2. उसके बाद शिष्य 'इच्छं' कहकर एक खमासमण देकर कहें- 'संदिसह कि भणामों?' गुरू कहे - वंदित्ता पवेयह।' 3. फिर शिष्य ‘इच्छं' बोलकर एक खमासमण देकर कहे- 'इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं पढमंउवहाणंपंचमंगलमहासुयक्खंधं, बीयंउवहाणं-पडिक्कमण सुयक्खंधं, तइयंउवहाणं-भावारिहंतत्थय, चउत्थंउवहाणं-ठवणारिहंतत्थय, पंचमं
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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