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________________ 320... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक और करवाने वाले को राशि का अधिक भाग व्यय करना होता है। जो लोग आर्थिक स्थिति से कमजोर हैं, उनके लिए यह तप करना बहुत मुश्किल है। दूसरी बात उपधान तप के नकरें ( धन राशि) और उपधान तप की पूर्णाहूति प्रसंग में मालारोपण के दिन की जाने वाली उछामणी (बोली) की राशि कोई विशेष कार्य के लिए उपयोग में नहीं आती है और जहाँ जरूरत नहीं है, उस देवद्रव्य में वृद्धि करने से क्या लाभ? क्योंकि उपधान तप की अवधि में जो भी उपज होती है, उस राशि का अधिकांश भाग देवद्रव्य में चला जाता है और शेष बची हुई राशि उत्सव - महोत्सव के आडम्बर में तथा साधर्मीवात्सल्य में पूरी हो जाती है, परन्तु उस राशि द्वारा समाज को किसी प्रकार का लाभ नहीं मिलता है, अतः उपधान-तप करना क्या जरूरी है ? इसके समाधान में हम यह कह सकते हैं कि जो व्यक्ति पूर्वोक्त प्रकार से उपधान तप के प्रति आक्षेप करते हैं, वे उसकी वस्तुस्थिति से सर्वथा अनभिज्ञ हैं। वस्तुत: आर्थिकदृष्टि से उपधान तप द्वारा समाज को जो लाभ मिलता है, वह अन्य अनुष्ठानों द्वारा प्राय: असंभव है। व्यावहारिक दृष्टि से धनिक वर्ग के लिए धन के सदुपयोग करने का इससे बढ़कर अन्य कोई उपाय असंभव है। दूसरे जो व्यक्ति ऐसा कहते हैं कि इस तप अनुष्ठान में अधिक द्रव्य व्यय होता है, उनका यह कथन बिल्कुल मिथ्या है। वस्तुस्थिति यह है कि उपधान करने वाला व्यक्ति जितने कम खर्च में जीता है, उतनी कम राशि में गृहस्थ जीवन को चलाने वाला दुर्लभ ही मिलेगा। प्रथम उपधान लगातार 47-51 दिन लगभग डेढ़ महीने का होता है । इस डेढ़ महीने के उपधान में प्रवेश करने वाले व्यक्ति को लगभग 15-17 दिन एकासना और आठ आयंबिल करने होते हैं, इस तरह लगभग 25 दिन उपवास के होते हैं | इस गणित के हिसाब से एक व्यक्ति के डेढ़ महीने तक का भोजन खर्च बीस रूपए प्रतिदिन से अधिक नहीं आता है। इसके सिवाय, उपधान तपवाही के निमित्त और कोई खर्च नहीं होता है। इसके विपरीत, जो लोग उपधान तप में प्रविष्ट नहीं होते हैं, उनका डेढ़ महीने में भोजन खर्च के अतिरिक्त नौकर-चाकर, कपड़े-गहने नाटक-सिनेमा, होटल-रेस्टोरेन्ट, कार - स्कूटर, बीड़ी-सिगरेट या अन्य व्यसन आदि का खर्च कितना आता होगा? उसमें से एक पाई का भी खर्च उपधानवाही को नहीं होता है। उपधान तप में कम से कम खाना, पहनना, नंगे पाँवों से चलना, भूमिशयन
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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