SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 246... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... कहकर सामायिक का आदेश लेते हैं। 5. पुन: एक खमासमणपूर्वक 'इच्छा. संदि. भगवन् ! सामायिक ठावा तीन नवकार गिणुंजी'-ऐसा कहकर, उत्कटासन मुद्रा में बैठकर एवं दाएं हाथ को नीचे स्थापित करते हुए तीन नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हैं। 6. फिर खड़े होकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! जीवराशि खमाऊँजी' कहकर गुरू हों, तो उनकी अनुमतिपूर्वक पाठ बोलते हैं।61 7. उसके बाद पुन: एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन! अढार पापस्थानक आलोऊजी'-ऐसा कहकर अनुमतिपूर्वक 'अठारह पापस्थानक' पाठ बोलते हैं। ____8. तदनन्तर एक खमासमणपूर्वक उत्कटासन में बैठकर 'इच्छा. संदि. भगवन् ! द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, धारूँ जी'-ऐसी अनुमति प्राप्त कर यह सूत्रपाठ बोलते हैं।62 9. उसके बाद खड़े होकर मौन पूर्वक एक नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हैं। फिर अर्द्धावनत मुद्रा में गुरू न हों, तो स्वयं ही एक बार सामायिक दंडक का उच्चारण करते हैं। यहाँ ‘बइसणं' 'सज्झाय' 'पंगुरणं' के आदेश नहीं लिए जाते हैं और न मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना की जाती है। मुखवस्त्रिका के स्थान पर उत्तरासंग का छेड़ा (दुपट्टे की एक तरफ की किनारी) प्रतिलेखित करते हैं। इस परम्परा में मुखवस्त्रिका रखने की परिपाटी नहीं है। मुखवस्त्रिका द्वारा सम्पन्न की जाने वाली सभी क्रियाएँ वस्त्र के छेड़े से करते हैं। वर्तमान में मुखवस्त्रिका रखने लगे हैं। ____10. सामायिक पूर्ण करते समय पहले ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करते हैं। फिर पूर्ववत् दो खमासमण के द्वारा ‘सामायिक पारूँ' 'सामायिक पार्से-ऐसे दो आदेश लेते हैं। 11. उसके बाद उत्कटासन में बैठकर तीन नमस्कारमन्त्र बोलते हैं। फिर अनुमति लेकर सामायिक पारने का पाठ कहते हैं।63 12. तत्पश्चात् तीन नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हैं और दो खमासमण देकर गुरू सुखशाता पूछते हैं। पायच्छंदगच्छ की परम्परा में सामायिकग्रहण एवं सामायिकपारणविधि तपागच्छ सामाचारी के अनुसार जाननी चाहिए। केवल सामायिक लेते
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy