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________________ सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...225 हूँ। प्रभु महावीर जो मूल्य निश्चित करें, वह दे देना।” श्रेणिक पुन: लौटा और उसने परमात्मा के चरणों में निवेदन किया- “पूणिया श्रावक सामायिक देने को तत्पर है, शीघ्र बताईए, एक सामायिक की क्या कीमत हूँ?" कृपालुदेव बोले- “श्रेणिक! सामायिक का मूल्य चुकाना तुम्हारे वश की बात नहीं है, मगध देश का समग्र राज्य देकर भी सामायिक का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता।" __ उपर्युक्त घटना सामायिक का वास्तविक मूल्य प्रस्तुत करती है। एक सामायिक के फल के समक्ष संसार की सम्पूर्ण भौतिक- समृद्धि हीन है, तुच्छ है। अत: सामायिक द्वारा सांसारिक-फल प्राप्त करना हाथी देकर गधा खरीदने के समान है, चिंतामणि रत्न फेंककर काँच का टुकड़ा लेने के बराबर है। ____ शास्त्रों में सामायिक फल की चर्चा करते हुए बताया गया है कि सामायिक द्वारा विशुद्ध बनी हुई आत्मा सर्वघाती कर्मों का क्षय करके लोकआलोक में प्रकाश करने वाला केवलज्ञान प्राप्त करती है। देवतागण भी सामायिक की इच्छा रखते हैं। वे दिन-रात एक ही चिन्तन करते हैं-“एक मुहूर्तभर के लिए सामायिक की सामग्री मिल जाए तो हमारा देवभव सफल हुआ मानेंगे।' सामायिक फल का मूल्यांकन करते हुए शास्त्रकारों ने कहा है कि एक सामायिक करने वाला बानवे करोड़, उनसठ लाख, पच्चीस हजार, नौ सौ पच्चीस पल्योपम तथा एक पल्योपम के एक तृतीयांश अधिक आठ भाग का देव आयुष्य बांधता है। ____ आचार्य हरिभद्रसूरिजी के अष्टकप्रकरण के अनुसार 'संक्लेश जननोराग' अर्थात समस्त क्लेशों-दुःखों का मूल राग है। जहाँ राग होता है वहाँ द्वेष भी होता है, किन्तु जहाँ द्वेष हो, वहाँ राग का होना निश्चित नहीं है। इसलिए राग को दूर करना आवश्यक है, क्योंकि मूल का नाश होने से शाखाओं का अस्तित्व स्वतः समाप्त हो जाता है। यहाँ राग मूल है और द्वेष शाखाएँ। राग और द्वेष के परिणाम को समान करने वाला अनुष्ठान सामायिक है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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