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________________ 188... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... असामित होने के कारण धर्म की सम्यक् आराधना करने वाले नहीं होते हैं। 2. कुछ रात्निक उपासक अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापी और सामित होने के कारण धर्म की सम्यक् आराधना करने वाले होते हैं। 3. कुछ अवमरात्निक (अल्पकालिक श्रावकपर्यायवाला) गृहस्थ महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापी और असामित होने के कारण धर्म की सम्यक् आराधना करने वाले नहीं होते हैं। 4. कुछ अवमरात्निक गृहस्थ अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापी और सामित होने के कारण धर्म की सम्यक् आराधना करने वाले होते हैं। इसी प्रकार श्रमणोपासिका के सम्बन्ध में भी चार वस्तुएँ बताई गईं हैं। यहाँ श्रद्धा और वृत्ति के आधार पर भी श्रमणोपासक के चार प्रकार बताए हैं।121 पुनः श्रमणोपासकों की योग्यता और अयोग्यता को संलक्ष्य रखकर चार विभाग किए गए हैं। इसके पाँचवें स्थान (5/1/389) में पाँच अणुव्रतों का नामोल्लेख मात्र हुआ है। ___इस तरह स्थानांगसूत्र में श्रमणोपासक के जीवन से सम्बन्धित चिन्तन बिखरा हुआ मिलता है। समवायांगसूत्र122 में श्रावकों की ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख किया गया है, इसके अतिरिक्त श्रावकधर्म सम्बन्धी कोई चर्चा लगभग नहीं हुई है। इसी अनुक्रम में भगवतीसूत्र में, जो सभी आगमों में विराट्काय आगम है। वहाँ 36,000 प्रश्नोत्तरों के माध्यम से विविध विषयों पर चिन्तन किया गया है। इसके अन्तर्गत श्रावक-जीवन की महत्ता पर भी प्रकाश डालने वाले कुछ विशिष्ट प्रसंग चर्चित हुए हैं। द्वितीय शतक में तुंगिया नगरी के श्रावकों के आदर्श जीवन का अंकन करते हुए कहा गया है कि वे स्वभाव से बहुत उदार थे, तत्त्वज्ञ थे तथा उनका जीवन जन-जन के लिए आदर्श था। भगवती के सातवें शतक में मदुक श्रमणोपासक का वर्णन है। वह राजगृह का रहने वाला था, जैन दर्शन का मर्मज्ञ विद्वान् था। भगवान महावीर ने भी उसके गंभीर ज्ञान की प्रशंसा की थी।123 ___भगवतीसूत्र के बारहवें शतक में भगवान महावीर के परम भक्त शंख और पोखली श्रावकों का वर्णन है जो श्रावस्ती के निवासी थे, जिन्होंने सामूहिक रूप
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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