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________________ 112... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... सम्यक्त्वव्रतारोपण-विधि खरतरगच्छ की वर्तमान परम्परा में सम्यक्त्वारोपणविधि विधिमार्गप्रपा ग्रन्थ के अनुसार करवाई जाती है। वह इस प्रकार हैं112 - * सर्वप्रथम शुभमुहूर्त के दिन सम्यक्त्व व्रतग्राही जिनमन्दिर में या समवसरण (त्रिगड़ा) में विराजित जिनबिंब की पूजा करें। * फिर नारियल सहित बढ़ती हुई अक्षत की तीन मुट्ठियों द्वारा उसकी अंजली को भरें। • उसके बाद व्रतग्राही नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। प्रत्येक प्रदक्षिणा में एक नवकार बोलें। - फिर ईर्यापथ का प्रतिक्रमण कर एक खमासमणसूत्रपूर्वक वंदन करके सम्यक्त्व, सामायिक और श्रुतसामायिक ग्रहण करने हेतु गुरू से देववन्दन करवाने का निवेदन करें। - पुन: एक खमासमणपूर्वक वासचूर्ण डालने का कहें। तब गुरू सम्यक्त्व-सामायिक एवं श्रुत-सामायिक का आरोपण करने के लिए सूरिमंत्र या वर्द्धमानविद्या से अभिमन्त्रित वासचूर्ण को सम्यक्त्वव्रतग्राही के उत्तमांग (मस्तक) पर डालें और उसका रक्षाकवच बनाएँ। - तदनन्तर गुरू व्रतग्राही को अपनी बायीं ओर बिठाकर जिनमें क्रमशः अक्षर, स्वर, व्यंजन और गाथाएँ बढ़ती हुई संख्या में हों, ऐसी स्तुतियों के द्वारा संघसहित देववंदन करें। इस देववंदन विधि में बढ़ती हुई चार स्तुतियों पूर्वक श्रीशान्तिनाथ, शान्तिदेवता, श्रुतदेवता, भुवनदेवता, क्षेत्रदेवता, अंबादेवी, पद्मावतीदेवी, चक्रेश्वरीदेवी, अच्छुप्तादेवी, कुबेरदेवता, ब्रह्मशांतिदेवता, गोत्रदेवता और शक्रादिवैयावृत्यकर देवता की आराधना निमित्त कायोत्सर्ग में नमस्कारमन्त्र का चिन्तन करें और कायोत्सर्ग पूर्णकर उन-उनकी स्तुतियाँ बोलें। उसके बाद शासनदेवता के कायोत्सर्ग में चार लोगस्ससूत्र का चिंतन करें। फिर कायोत्सर्ग पूर्णकर गुरू स्वयं स्तुति बोलें। फिर चैत्यवन्दन की मुद्रा में बैठकर शक्रस्तवसूत्र, अरिहाणादिस्तोत्र एवं जयवीयरायसूत्र बोलें। इन सूत्रों को यथायोग्य मुद्रापूर्वक बोलें। यहाँ तक की प्रक्रिया समस्त प्रकार के व्रतारोपण, पदस्थापन, उपधान आदि की नन्दिविधियों में प्राय: समान होती है। - उसके बाद व्रतगाही खमासमणसूत्रपूर्वक वंदन करके कहें-“हे भगवन्! मुझे सम्यक्त्व-सामायिक और श्रुत-सामायिक का आरोपण करने के
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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