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________________ 108... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक हो, संग्रहशील हो, विकथारहित हो, अचंचल हो, प्रशान्त हृदयवाला हो, आचारकुशल हो, संविग्न हो, मध्यस्थ विचारवाला हो, गीतार्थ हो, कृतयोगी हो, श्रोता के भावों को जाननेवाला हो, लब्धिसंपन्न हो, देशना करने की रूचिवाला हो, नैमित्तिक हो, प्रिय बोलनेवाला हो, सुस्वरवाला हो, तपनिरत हो, शरीर से बलिष्ठ हो, धारणा शक्तिवाला हो, जिसने बहुत कुछ देखा हो, नैगमादि नयमत में निपुण हो, सुंदर शरीरवाला हो, प्रतिवादियों को जीतने वाला हो, पर्षदादि के लिए आनंदकारक हो, गंभीर हो, अनुवर्त्तन करने में कुशल हो, स्थिर चित्तवाला हो, उचित गुणों से युक्त हो, ऐसा आचार्य या गुरू सम्यक्त्वव्रत आदि प्रदान करने के योग्य होता है। सम्यक्त्वव्रत ग्रहण हेतु शुभ मुहूर्त्तादि का विचार .... नक्षत्र - तारों के समुदाय को नक्षत्र कहते हैं। आकाश मण्डल में ग्रहों की दूरी नक्षत्रों से ज्ञात की जाती है। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र माने गए हैं, उनमें निम्न नक्षत्र सम्यक्त्वव्रत आदि के लिए निषिद्ध हैं 1. सन्ध्यागत- सूर्यास्त के समय रहने वाला नक्षत्र, 2. रविगत - जिस नक्षत्र में सूर्य स्थित रहता है, 3. विड्वर- टूटा हुआ नक्षत्र, 4. संग्रह - क्रूर ग्रह में रहा हुआ नक्षत्र, 5. विलम्बित - जिस नक्षत्र में सूर्य पृष्ठ भाग में हो, 6. राहुहत- जिस नक्षत्र में ग्रहण हो और 7. ग्रहभिन्न- जिस नक्षत्र के बीच से ग्रह जाता हो। 106 आचारदिनकर के अनुसार मृदु, ध्रुव एवं क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र भी सम्यक्त्वव्रत के लिए वर्जित हैं। 107 सामान्यतया व्रत ग्रहण के लिए तीनों उत्तरा (उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद और उत्तराषाढ़ा) और रोहिणी नक्षत्र शुभ माने गए हैं। 108 तिथि- गणिविद्या प्रकीर्णक के अनुसार कृष्ण एवं शुक्लपक्ष की चतुर्थी, षष्ठी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या एवं पूर्णिमा के दिन किसी कार्य का प्रारम्भ नहीं करना चाहिए अतः ये तिथियाँ व्रत ग्रहण के लिए वर्जित मानी जा सकती हैं। इसमें दीक्षा के लिए नन्दा (प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी), जया (तृतीया, अष्टमी, त्रयोदशी) एवं पूर्णा (पंचमी, दशमी, पूर्णिमा)-इन तिथियों को शुभ माना है। 109 वार- इस व्रत के लिए मंगल एवं शनि को छोड़कर शेष वार शुभ माने
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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