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________________ 106... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... त्याग 24 क्र. | आचार्य हरिभद्र आचार्य हेमचन्द्र आचार्य नेमिचन्द्र | पं.आशाधर द्वारा प्रतिपादित । द्वारा प्रतिपादित | द्वारा प्रतिपादित | द्वारा प्रतिपादित | यथोचित अयोग्य देश लोकयात्रा (किसी | काल में गमन के साथ दुर्व्यवहार | | न करना (21) नहीं) करना अतिपरिचय का स्वयं की शक्ति-अशक्ति का विचार कर कार्य करना (27) | व्रतधारी और व्रतधारी और ज्ञानी पुरूषों की ज्ञानवृद्ध की सेवा सेवा करना करना (34) धर्म, अर्थ | पोष्यपोषण और काम-पुरूषार्थ | परिवार का का उचित सेवन | पोषण करना (18) करना। | धर्म, अर्थ और दीर्घदर्शी होना | काम-पुरूषार्थ के | सेवन में औचित्य का वर्तन करना, अर्थात् तीनों का परस्पर सामंजस्य | बना रहे। 27. | स्वयं की शक्ति- | विवेकशील होना | अशक्ति का विचार कर कार्य का प्रारंभ करना
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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