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________________ 78... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... वर्णन आगमेतर-साहित्य तत्त्वार्थसूत्र34, रत्नकरण्डश्रावकाचार35, श्रावकप्रज्ञप्ति36, श्रावकधर्मविधिप्रकरण37 आदि अनेक ग्रन्थों में दृष्टिगत होता है। सम्यग्दर्शन के दसविध भेदों का उल्लेख सर्वप्रथम उत्तराध्ययनसूत्र में प्राप्त होता है। इसके पश्चात् परवर्ती साहित्य में यह वर्णन कई ग्रन्थों में परिलक्षित होता है। यदि इस सम्बन्ध में श्वेताम्बर-दिगम्बर परम्परा की दृष्टि से मनन करें, तो सम्यग्दर्शन के निसर्ग आदि दसविध भेदों को छोड़कर शेष के नाम, क्रम, प्रकार आदि में पूर्ण समानता है, जबकि सम्यग्दर्शन के दसविध भेदों में नाम, क्रम एवं स्वरूप- इन तीनों को लेकर असमानता है। दिगम्बर-परम्परा का प्रसिद्ध ग्रन्थ अनगारधर्मामृत में सम्यग्दर्शन के निम्न दस प्रकार बताये हैं- 1. आज्ञा 2. मार्ग 3. उपदेश 4. सूत्र 5. बीज 6. संक्षेप 7. विस्तार 8. अर्थ 9. अवगाढ़ 10. परमावगाढ़।38 ___ श्वेताम्बर-परम्परा के दसविध भेदों का क्रम पुनश्च इस प्रकार है1. निसर्ग 2. उपदेश 3. आज्ञा 4. सूत्र 5. बीज 6. अभिगम 7. विस्तार 8. क्रिया 9. संक्षेप और 10. धर्म।। यदि दोनों में नाम साम्यता की दृष्टि से तुलना की जाए तो 1.उपदेश 2. आज्ञा 3. सूत्र 4. बीज 5. विस्तार 6. संक्षेप- ये छ: नाम दोनों में मान्य हैं, शेष भिन्न हैं। इनमें क्रम की दृष्टि से काफी अन्तर है, किन्तु अर्थ की दृष्टि से समानता है। सम्यग्दर्शन के आठ अंग ___ सम्यग्दर्शन के अष्ट अंग जैन धर्म की सभी परम्पराओं प्रसिद्ध हैं। जिसके जीवन में सम्यग्दर्शन का जन्म होता है, उसके जीवन में ये आठ अंग भी सहज प्रकट हो जाते हैं। जिस प्रकार सम्यग्दर्शन के बिना मोक्षमार्ग और मोक्ष संभव नहीं, उसी प्रकार अष्ट अंग के बिना सम्यग्दर्शन भी संभव नहीं है। अष्ट अंग सहित सम्यग्दर्शन ही संसार को छेदने में और मोक्ष को प्राप्त कराने में समर्थ है। जैनाचार्यों का कहना है कि जैसे अशुद्ध मन्त्र विष की वेदना को नष्ट नहीं कर सकता है, वैसे ही अंगरहित सम्यग्दर्शन भी संसार की स्थिति का छेदन नहीं कर सकता है।39 सम्यग्दर्शन के अष्ट अंग निम्न हैं40
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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