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________________ x... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... आप अपनी वाक् पटुता एवं मधुर वाणी से सबके दिलो को छू जाती है। आपके सुपुत्र राजकुमारजी एवं अरविंदजी सुखानी भी आपके समान ही धर्मप्रिय एवं जनप्रिय हैं। ज्येष्ठ पुत्र श्री राजकुमारजी सुखानी ने 16 वर्ष की उम्र से ही स्टेम्प के व्यापार में प्रवेश कर लिया था। अपने पिताजी के इस Business को आपने देश-विदेश में ऊँचाईयों तक पहुँचाया है। आप सामाजिक पद-प्रतिष्ठाओं से दूर रहकर भी समाज विकास में हर संभव सहायता करते हैं। सरलता, सादगी एवं भद्रता आपके चेहरे पर मधुरस के समान टपकती है। कोई एक बार भी आपके परिचय में आ जाए वह आपको भूल नहीं सकता। श्रीमती अमिता राजकुमारजी सुखानी एक स्वाध्याय प्रिय Business Women है। Hi-profile Society में रहते हुए भी आपके जीवन में धर्म कार्यों के प्रति पूर्ण सजगता एवं अन्तरंग रुचि दृष्टिगत होती है। इतने ही सुंदर संस्कारों से अपने सुपुत्र अभिषेक एवं वेदान्त को भी नवाजा है। पूज्य गुरुवर्या श्री से सुखानी परिवार का संबंध बहुत पुराना है। पिछले सतरह वर्षों से तो अत्यंत निकटता से जुड़ गए हैं। आप पूज्य गुरुवर्या श्री को गुरु से भी बढ़कर मानते हैं। सन् 2012 का कलकत्ता चातुर्मास आप ही के द्वारा नवनिर्मित अरिहंत भवन में सम्पन्न हुआ है। इस समय पाँचों महीने की साधर्मी भक्ति का लाभ भी आप ही के परिवार ने लिया। सकारात्मक जीवन शैली एवं स्वाध्याय आप दोनों की विशिष्ट पहचान हैं। श्रुतज्ञान के प्रति आपकी अभिरुचि इतनी अधिक है कि अपने परिवार द्वारा आयोजित चातुर्मास में 50 दिन के बाद चातुर्मासिक मोह का त्याग करते हुए सौम्यगुणाजी को अपने अध्ययन के लिए पूर्ण समय दे दिया तथा अधिक से अधिक पुस्तक प्रकाशन में सहयोग देने की भावना व्यक्त की। जैन समाज में आज भी ऐसे दानवीर हैं जो साधु-साध्वियों का हौसला बढ़ाकर उन्हें शासन सेवा के लिए प्रेरित करते हैं। जैन संघ आप जैसे नर रत्नों से सदा सुशोभित रहें, इसी भावना के साथ सज्जनमणि ग्रन्थमाला प्रकाशन आपके परिवार के बारे में यही कहेगा कि ये चंद जलवे हैं जो झलक आए हैं। रंग और भी बहुत है, जिंदगी के गुलशन में।।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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