SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्त्य संस्कार विधि का शास्त्रीय स्वरूप ...309 अन्त्य संस्कार के लिए मुहूर्त विचार यह सर्वविदित है कि प्रत्येक देहधारी को मृत्यु का ग्रास निश्चित रूप से बनना होता है। मृत्यु के संकट को टालने में कोई भी समर्थ नहीं है। जो आत्माएँ मृत्युंजयी हो चुकी हैं, जन्म-मरण की परम्परा का विच्छेद कर चुकी हैं उन्हें छोड़िए, शेष सभी के लिए मृत्यु को प्राप्त करना निश्चित है, किन्तु वह मृत्यु कब आ जाए, आयुष्य की डोर कब टूट जाए, तद्भव शरीर में रहने की अवधि कब समाप्त हो जाए यह अनिश्चित है। इस दृष्टि से अन्त्य-संस्कार हेतु शुभ मुहूर्त आदि की परिकल्पना करना भी अनुचित है। यह संस्कार मृत्यु आगमन की तरह अनिश्चित दिन में किया जाता है, किन्तु जैन ग्रन्थों में इतना उल्लेख अवश्य मिलता है कि मरणोत्तरकालीन प्रेत सम्बन्धी क्रियाकलाप अमुक-अमुक नक्षत्र आदि में ही करना चाहिए। इसमें यह भी निर्देश है कि अमुक नक्षत्रों के योग में तृण, काष्ठ आदि एकत्रित नहीं करना चाहिए। यहाँ मृतात्मा के पुतले किस दिन, किन नक्षत्र आदि में किए जाने चाहिए, इसका भी उल्लेख है। आचारदिनकर में यह भी बताया गया है कि अन्तिम आराधना के दिन से लेकर शोक दूर करने तक के क्रियाकलापों में मुहर्तादि नहीं देखना चाहिए, क्योंकि ये आवश्यक कर्तव्य रूप हैं। इस कथन से मुहूर्त्तादि न देखने का प्रयोजन स्वतः स्पष्ट हो जाता है। प्रेत क्रिया सम्बन्धी विचार प्रेत क्रिया के लिए निम्न नक्षत्र, वार आदि अशुभ कहे गए हैं-मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा, कृतिका, पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, पुनर्वसु, भरणी, मघा, पूर्वाषाढ़ा, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, आर्द्रा, मूल, अनुराधा आदि नक्षत्र तथा मंगल, गुरु, शनि-इन वारों में प्रेत क्रिया नहीं करनी चाहिए। प्रेत क्रिया के लिए रेवती, श्रवण, आश्लेषा, अश्विनी, पुष्य हस्त, स्वाति, मृगशिरा-ये नक्षत्र तथा सोम, गुरु, शनि-ये वार उत्तम माने गए हैं। मृतदेह की दाहक्रिया हेतु धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती-इन नक्षत्रों में तृण-काष्ठ आदि को एकत्रित करने का निषेध किया गया है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy