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________________ चूड़ाकरण संस्कार विधि का उपयोगी स्वरूप ...163 शरीर को बढ़ाता एवं बलशाली बनाता है। शिखा द्वारा इस ग्रन्थि को अपना कार्य करने में बड़ी सहायता प्राप्त होती है, इससे यह चिरकाल तक कार्यशील रहती है और वह मनुष्य को दीर्घकाल तक स्वस्थता प्रदान करती है। योगशास्त्रियों के मतानुसार मानव शरीरगत मुख्य सुषुम्ना नाड़ी स्वाधिष्ठान से आरम्भ होकर मस्तिष्क में जाकर समाप्त होती है। इसके उत्कृष्ट रन्ध्र-भाग शिखा स्थल के ठीक नीचे खुलते हैं। यही स्थान ब्रह्मरन्ध्र है, यह बुद्धि तत्त्व का केन्द्र भी है। चोटी या शिखा द्वारा इसी सुषुम्ना की रक्षा होती है। शिखा के अधोभाग में एक मर्मस्थान होता है, जहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती है। शिखा इस अत्यन्त कोमल तथा सद्योमारक मर्मस्थान के लिए प्रकृति प्रदत्त कवच है, जो आकस्मिक आघातों एवं उग्र शीत-आतपादि से इस मर्मस्थान को बचाती है। सूर्य को जीवन शक्ति का मूल कारण माना है। ब्रह्मरन्ध्र शान्तिप्रिय है, तो मस्तुलिगं उष्ण प्रकृति का है। शिरोवेदना में तालु के बाल काटने से वेदना शान्त हो जाती है, पर मस्तुलिंग के लिए उष्णता पाने हेतु उसके ऊपर गोखर के आकार का केशगुच्छ रखा जाता है, ताकि वह सूर्य से आवश्यक ताप ग्रहण करता रहे। बालों के गुच्छों को शिखा के रूप में रखे जाने का यही रहस्य है, यही उसकी विशेषता है। वैज्ञानिक विचार से काली वस्तु सूर्य की किरणों से अधिक ताप तथा शक्ति को ग्रहण किया करती है, इससे मानव की आयु, बल और तेज की वृद्धि होती है। परमार्थत: चूड़ाकरण या शिखा धारण एक ऐसी प्रक्रिया है, जो सुरक्षा कवच के रूप में गुप्तद्वार, दशमद्वार, इन्द्रयोनि, अधिप, मस्तुलिंग आदि नामों से पुकारे जाने वाले मर्म स्थल और ब्रह्मरन्ध्र की रक्षा का कार्य करती है। साथ ही यह शिखा आयु, बल, तेज तथा वृद्धि के उन्नयन के लिए आवश्यक अदृश्य शक्तियों को सहस्रदल कर्णिका में रोके रखने में रोधक का कार्य भी करती है। इस प्रकार धार्मिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से विचार करने पर शिखा का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान सिद्ध होता है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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