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________________ 132...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन साक्षात्कार से किसी वस्तु का आभास किया जा सकता है, किन्तु उसका स्पष्ट अभिज्ञान नाम से ही होता है। नामोच्चारण करते हुए उसकी गुण राशि भी स्पष्ट होती है जैसे- मृत, गंगा, शंकर, आदि। 'नाम' शब्द का अर्थ ही है-'नम्यते अभिधीयते अर्थोऽनेन इति नाम' अर्थात जिससे अर्थ का अभिज्ञान हो, वही नाम है। रूप के सम्मुख रहने पर भी नाम को जाने बिना स्पष्ट ज्ञान नहीं होता है अत: जगत्-व्यापार में नाम का अत्यधिक महत्त्व है। यह मानव की भाषिक-संरचना है। मनुष्यों की तो बात ही क्या? पशु-पक्षी भी अपना नाम सुनकर उल्लसित, उत्कण्ठित होते हैं। सन्त मनीषी कहते हैं-'नाम अखिल व्यवहार एवं मंगलमय कार्यों का हेतु है।' इसी कारण नामकर्म अत्यन्त प्रशस्त है। संतों के नाम की महिमा तो इतनी अधिक है कि नाम लेते ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। जय महावीर, जय जिनेन्द्र, जय श्रीराम इत्यादि कहते ही हमारे अंग-प्रत्यंग में एक विशिष्ट प्रकार की संतुष्टि एवं समाधि का संचार हो जाता है। अस्तु, भूतल पर अवतरित प्राणी को पृथक् अस्तित्व एवं विशिष्ट स्वरूप प्रदान करने वाला पहला चरण है-नामकरण संस्कार।22 यदि हम इस संस्कार का समीक्षात्मक पहलू से विचार करें, तो कुछ रहस्य उद्घाटित होते हैं। जैसे-बारहवें दिन या बारहवें दिन के बाद ही पुत्र का नामकरण संस्कार इसलिए किया जाता है कि नवजात शिशु के प्रारम्भिक 1011 दिन बहुत ही नाजुक एवं आशंकाओं से भरे हुए होते हैं, यदि इसी अन्तराल में शिशु का नामकरण कर लिया जाए और आपातत: उसकी मृत्यु हो जाए तो अत्यन्त कोमल एवं संवेदनशील जनमानस को उस शब्द (नाम) के प्रति घृणा हो सकती है। नाम शिशु जीवन का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। भावी जीवन की लम्बी यात्रा उस नाम के आधार पर ही पूरी करनी होती है अत: नामकरण के दिन को उत्सवमहोत्सव पूर्वक मनाना चाहिए और वह महोत्सव जन्म के 10-12 दिन बाद ही संभव हो सकता है, क्योंकि 10-12 दिन के पूर्व माता एवं शिशु-दोनों ही प्रसूति कक्ष से बाहर निकलने की स्थिति में नहीं होते हैं। माता के पास प्रसवोपरान्त प्रारम्भिक दिनों में रक्तस्राव आदि की अशुद्धि रहती है, इस कारण भी नामकरण संस्कार के लिए बारहवाँ दिन योग्य माना गया है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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