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________________ नामकरण संस्कार विधि का प्रचलित स्वरूप ...125 मनुष्य सामाजिक बनता है। मनुष्य अपने जीवन के व्यवहारों में सहूलियतें भी नाम के बलबूते पर पाता है। नाम ही सभी प्रकार के विश्वासों का स्तम्भ होता है। इस विश्व में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो नाम के महत्त्व को समझ सकता है और व्यक्ति को उनके नाम से जान सकता है। नाम के अर्थों का बोधक मनुष्य को माना गया है अत: जीवन यात्रा की समस्त गतिविधियों का सम्यक संचालन करने के लिए वस्तु हो या व्यक्ति, पदार्थ हो या प्राणी, नाम अवश्य दिया जाना चाहिए, अन्यथा जीवन व्यवहार समाप्त हो जाएगा। दूसरा उल्लेखनीय यह है कि नाम राशि के आधार पर ही व्यक्ति के भावी जीवन के शुभाशुभत्व एवं सत्यासत्य की भविष्यवाणी की जाती है। मनुष्य नाम से ही यश और कीर्ति प्राप्त करता है। इस संस्कार का फल आयु और तेज की वृद्धि तथा लौकिक व्यवहार की सिद्धि बताया गया है। इस प्रकार नामकरण संस्कार की आवश्यकता अनेक दृष्टियों से ज्ञात होती है। नामकरण संस्कार का सर्वांगीण प्रयोजन नामकरण संस्कार का प्रयोजन बालक को समाज से और समाज को इस नूतन आगन्तुक से परिचित करवाना है। किस नाम से उसे समाज जाने? इस समस्या का निराकरण करने के लिए ही जातक का नामकरण किया जाता है। नामकरण के पीछे भावों की ऐसी स्फुरणा होनी चाहिए कि समाज द्वारा बालक को श्रेष्ठ स्थान मिले। नाम केवल शब्दों का समूह ही नहीं होता, उन शब्दों के पीछे भावना भी संलग्न रहती है। शब्दों का जो अर्थ होता है, उससे स्मृति का एक ताना-बाना जुड़ा रहता है जैसे-किसी को गधा, कुत्ता, दुष्ट, कसाई आदि कहा जाए तो इन शब्दों के अर्थ से जिन जानवरों या कुकर्मियों का सम्बन्ध जुड़ा है, उनकी स्मृति सामने आ जाती हैं, फलस्वरूप जिनके लिए इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उनके लिए भी निकृष्टता एवं घृणा का भाव पैदा हो जाता है। यह मनोविज्ञान का सिद्धान्त है कि अच्छे या बुरे शब्द जो अपने लिए एक बार भी कहे जाते हैं, वे मन पर अच्छा या बुरा असर जरूर डालते हैं। जिसने कहा है, जिसने सुना है या जिसके प्रति कहा गया है, उन सभी पर उच्चरित शब्दों का प्रभाव पड़ता है, इसलिए हर व्यक्ति का अर्थप्रधान एवं गुण प्रधान नाम दिया जाना चाहिए, ताकि सामाजिक जीवन में उसका मान-सम्मान बढ़ता
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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