SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 76...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन • फिर गृहस्थ गुरु बालक, पिता, दादा आदि को मंत्र पूर्वक आशीर्वाद दें। • फिर ज्योतिषी भी उन सभी को शुभाशीष प्रदान करे। फिर ज्योतिषी जन्मलग्न बताकर अपने घर चला जाए। • उसके बाद गृहस्थ गुरु प्रसूति का सूतिकर्म करने के लिए कुल की वृद्धाओं और दाईयों को आदेश दें। . तत्पश्चात नवजात शिशु को पवित्र करने की दृष्टि से जलाभिमंत्रण द्वारा सात बार जल को संस्कारित करें। अभिमन्त्रित जल के द्वारा कुल वृद्धाएँ बालक को स्नान कराएं और अपने-अपने कुलाचार के अनुसार नाल छेद करें। • फिर गृहस्थ गुरु चन्दन, रक्तचन्दन, विल्व (बेल) नामक वृक्ष की लकड़ी आदि जलाकर भस्म बनाएं। उस भस्म में श्वेत सरसों और नमक को मिश्रित एक पोटली बनाए। उस पोटली को निर्दिष्ट रक्षा मन्त्र द्वारा सात बार अभिमन्त्रित करें। उसके बाद रक्षापोटली को काले धागे से बांधे। फिर लोहा, वरूणमूल एवं रक्त-चंदन का टुकड़ा और कौड़ी सहित वह रक्षापोटली कुल वृद्धाओं के द्वारा बालक के हाथ में बंधवाए।11 श्वेताम्बर परम्परानुसार जन्म संस्कार की यह विधि जाननी चाहिए। दिगम्बर- दिगम्बर परम्परा में जन्म संस्कार सम्बन्धी प्रियोद्भव नाम की क्रिया अरिहंत परमात्मा के स्मरण एवं विविध प्रकार के विधि-विधान पूर्वक की जाती है। आदिपुराण में यह निर्देश दिया गया है कि इस क्रिया में क्रिया मन्त्र आदि अवान्तर कितने ही विशेष कार्य कठिनतर हैं, इसलिए तत्सम्बन्धी मूलभूत जानकारी प्राप्त करने हेतु 'उपासकाध्ययन' का अवलोकन करना चाहिए। सुप्रीति-संस्कार- दिगम्बर मतानुसार सुप्रीति नामक तीसरा संस्कार गर्भाधान से पाँचवें माह में, मन्त्रविद् एवं क्रियाविद् उत्तम श्रावकों द्वारा निष्पन्न किया जाता है। आदिपुराण के अनुसार इस संस्कार की समस्त विधि गर्भाधान की तरह ही अग्नि तथा देवता के साक्षी पूर्वक और अरिहन्त प्रतिमा की पूजा पूर्वक सम्पन्न करनी चाहिए।12 वैदिक- वैदिक परम्परा में जातकर्म संस्कार के संदर्भ में पृथक-पृथक विधियाँ प्राप्त होती हैं। जैसे-पूर्वकाल में पुत्र का जन्म होने पर यह माना जाता था कि पिता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है13 एतदर्थ पुत्र का जन्म होने पर वह पुत्र का मुख देखने के लिए पत्नी के निकट जाता था। फिर पुत्र का मुख देखकर
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy