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________________ अध्याय - 4 जातकर्म संस्कार विधि का पारम्परिक स्वरूप विश्व की विविध संस्कृतियों में बालक के जन्म को आनंद एवं उत्साह का अवसर माना जाता है। जन्म महोत्सव एक नए सदस्य के आगमन की सूचना जग जाहिर करने एवं उसे सम्मान पूर्वक स्वीकार करने का भी सूचक है। भारतीय परम्परा में इसे एक संस्कार का रूप प्रदान किया गया है। श्वेताम्बर परम्परानुसार तीसरा संस्कार 'जन्म' नाम का है। दिगम्बर मत में तीसरा संस्कार 'सुप्रीति' नाम का है तथा वैदिक धर्म में तीसरा संस्कार ‘सीमन्तोन्नयन' नाम का माना गया है। ये तीनों ही संस्कार भिन्न-भिन्न अर्थ को लिए हुए हैं। यदि हम तीनों परम्पराओं के आधार पर इस संस्कार का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करना चाहें तो दिगम्बर-परम्परा का छठवां 'प्रियोद्भव' संस्कार एवं वैदिकपरम्परा का चौथा 'जातकर्म' संस्कार श्वेताम्बर मान्य जन्म-संस्कार के समकक्ष प्रतीत होते हैं। जन्म, प्रियोद्भव एवं जातकर्म-ये तीनों ही शब्द एकार्थवाची हैं तथा जन्म सम्बन्धी क्रियाकलापों से सम्बन्ध रखने वाले हैं। यहाँ एकार्थवाची शब्दों की दृष्टि से इस संस्कार का स्वरूप प्रतिपादित किया जा रहा है। जातकर्म संस्कार का अर्थ जातकर्म संस्कार से तात्पर्य गर्भस्थ शिशु के जन्म समय के अवसर पर किए जाने वाले विधि-विधान से है। यह संस्कार बालक के जन्म होने के साथ सम्पन्न किया जाता है। यहाँ 'जातकर्म' नाम से यह स्पष्ट हो जाता है कि जिसका जन्म हुआ हो, उससे सम्बन्धित किए जाने वाले क्रिया कलाप अत: जो विधिविधान स्त्री के प्रसव होने पर किए जाते हैं, वे जातकर्म संस्कार कहे जाते हैं। जातकर्म संस्कार की आवश्यकता । यदि हम इस संस्कार की आवश्यकता के विषय में गहराई से चिन्तन करें और इतिहास के पृष्ठों पर नजर रखें तो कुछ तथ्य अवश्य उजागर होते हैं। संभवतः किसी काल में आदिम मानव के लिए शिशु का जन्म होना एक
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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