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________________ 56... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन संस्कार की सफलता के लिए इष्टोपासना को महत्त्व दिया गया है। जैन धर्म में अरिहन्त-प्रतिमा का पूजन करने का निर्देश है तो वैदिक-धर्म में गणपति के साथ मातृका का पूजन किए जाने का उल्लेख है | 26 श्वेताम्बर परम्परा में यह विधि कुछ विस्तृत रूप से उल्लिखित है जबकि दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में इस विधि का संक्षिप्त स्वरूप ही वर्णित है। गर्भाधान संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों के प्रयोजन दिगम्बर-आम्नाय में गर्भाधान आदि संस्कार सम्पन्न करते समय तीन अग्नियों की स्थापना की जाती है। ये तीनों ही अग्नियाँ तीर्थंकर, गणधर और सामान्य केवली के निर्वाण - महोत्सव में पूजा का अंग होकर अत्यन्त पवित्रता को प्राप्त हुई मानी जाती हैं। आदिपुराण में निर्देश है कि ये तीनों अग्नियाँ क्रमशः गार्हपत्य, आह्वानीय और दक्षिणाग्नि नाम से प्रसिद्ध हैं और तीन कुण्डों में स्थापित की जाती हैं। इन तीनों प्रकार की अग्नियों में मन्त्रों के द्वारा पूजा करने वाला पुरुष द्विजोत्तम कहलाता है और जिसके घर इस प्रकार की पूजा नित्य होती रहती है, वह अहिताग्नि या अग्निहोत्री कहलाता है । नित्य पूजन करते समय गार्हपत्य अग्नि से नैवेद्य पकाया जाता है, आहवनीय अग्नि में धूप खेई जाती है और दक्षिणाग्नि से दीपक जलाया जाता है। अत्यन्त सावधानी के साथ इन तीनों अग्नियों की रक्षा करनी चाहिए और जिनका कोई संस्कार नहीं हुआ है - ऐसे अन्य लोगों को कभी नहीं देनी चाहिए। “इन तीन अग्नियों की पूजा करना निर्दोष है" - इस मत की पुष्टि करते हुए जिनसेनाचार्य ने कहा है अग्नि में स्वयं पवित्रता नहीं है और न वह देवता रूप ही है, किन्तु अरिहन्त प्रतिमा की पूजा के सम्बन्ध से वह अग्नि पवित्र हो जाती है, इसलिए द्विज लोग इसे पूजा का अंग मानकर इसकी पूजा करते हैं, अतएव निर्वाण क्षेत्र की पूजा समान अग्नि की पूजा करने में कोई दोष नहीं है । स्पष्ट है कि जिस प्रकार जिनेन्द्रदेव के सम्बन्ध से क्षेत्र पूज्य हो जाता है, उसी प्रकार उनके सम्बन्ध से अग्नि भी पूज्य हो जाती है अतएव जिस प्रकार
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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