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________________ 54...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन कुरू कुरू, तुष्टिं कुरू कुरू, पुष्टिं कुरू कुरू, भगवती, गुणवती, जनानां शिव शान्ति तुष्टि पुष्टि स्वस्ति कुरू-कुरू ॐ नमो-नमो हू यः क्ष: ह्रीं फट् फट् स्वाहा। ऊँ नमो भगवतेऽर्हते शान्ति स्वामिने सकलातिशेषक महासंपत्समन्विताय, त्रैलोक्यपूजिताय, नमः शान्तिदेवाय, सर्वामरसमूहस्वामिसंपूजिताय, भुवनपालनोद्यताय, सर्वदुरितविनाशनाय सर्वाशिव प्रशमनाय, सर्वदुष्टग्रह-भूतपिशाच-मारिडाकिनी प्रमथनाय, नमो भगवति विजये, अजिते, अपराजिते जयन्ति जयावहे सर्वसंघस्य भद्रकल्याण- मंगलप्रदेसाधुनां शिवशान्ति तुष्टिपुष्टि स्वस्तिप्रदे भव्यानां सिद्धिवृद्धि निवृत्तिनिर्वाणजननि सत्त्वानामभयप्रदाननिरते, भक्तानां शुभावहे, सम्यग्दृष्टिनां धृतिरतिमतिवृद्धि प्रदानोद्यते, जिनशासननिरतानां श्री संपत्कीर्तियशोवद्धिनि, रोगजलज्वलनविषविषधरदुष्टज्वरव्यन्तरराक्षसरि-पुमारि चौरतिश्वापदोपसर्गादि-भयेभ्यो रक्ष रक्ष, शिवं कुरू कुरू शान्तिं कुरू कुरू तुष्टिं कुरू पुष्टिं कुरू कुरू स्वस्तिं कुरू कुरू भगवति श्री शान्तितुष्टिपुष्टि स्वस्ति कुरू कुरू ॐ नमो नमः हूं: हः यः क्षः ही फट् स्वाहा।” • तत्पश्चात सधवा स्त्रियाँ उस अभिमंत्रित जल द्वारा गर्भवती स्त्री को स्नान कराएं। • उसके बाद सुगंधित वस्तुओं का उस पर अनुलेपन करें, अखण्ड वस्त्र पहनाएं, यथायोग्य आभूषण धारण करवाएं। • फिर पति के साथ वस्त्रांचल से ग्रन्थिबंधन22 करवाएं। • फिर पति के बाईं ओर शुभ आसन पर स्वस्तिक बनाकर गर्भवती को उस पर बिठाएं। • उसके बाद गृहस्थ गुरु पट्ट पर बैठकर तीर्थोदक द्वारा, कुशाग्र के पत्ते से गर्भवती का सिंचन करे। वह सिंचन-क्रिया सात बार करे तथा उस समय गृहस्थ गुरु आर्य मंत्र का उच्चारण करे। • उसके बाद गृहस्थ गुरु दम्पत्ति सहित जिन-प्रतिमा के निकट जाए और शक्रस्तवसूत्र पूर्वक चैत्यवंदन करवाए। • गर्भवती नारी जिन-बिम्ब के समक्ष यथाशक्ति फल आदि चढ़ाए। फिर उस गुरु को वस्त्र आदि का दान दे। गुरु भी उन्हें आशीर्वाद प्रदान करे। . उसके बाद दम्पत्ति के वस्त्रांचल का मन्त्रोच्चारण पूर्वक ग्रंथि-वियोजन करे। • फिर उपाश्रय में सद्गुरु विराजित हों तो उनके पास जाएं, वंदन आदि करें और यथाशक्ति अशन एवं वस्त्र आदि प्रदान कर धर्मलाभ प्राप्त करें। यह
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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