SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 54...शोध प्रबन्ध सार प्रस्तुत अध्याय में मण्डली का अर्थ बताते हुए उसकी आवश्यकता कब से और क्यों? विविध संदर्भो में उसकी प्रासंगिकता, मण्डली तप विधि आदि का सारगर्भित स्वरूप प्रस्तुत किया गया है। इस अध्याय का हेतु चारित्र धर्म की अक्षुण्णता को बनाए रखना है। केश लुंचन जैन मुनियों की एक विशिष्ट एवं अपरिहार्य क्रिया है। यह क्रिया कष्ट सहिष्णुता का चरम प्रतीक है। दीक्षित होने के साथ ही केश लोच होता है। केश लोच प्रव्रजित व्यक्ति के कषायों को लुंचित करने का प्रतीक है। केश लुंचन के पीछे कई प्रयोजन रहे हुए हैं। उन सभी प्रयोजनों को स्पष्ट करते हुए छठे अध्याय का गुम्फन किया गया है। छठवें अध्याय में केशलोच की आगमिक विधि बतलाते हुए उसके अपवाद आदि बताए गए हैं। इसी क्रम में केश लुंचन आवश्यक क्यों? केश लंचन न करने से लगने वाले दोष, मनि किन स्थितियों में लोच करवाए? केश लुंचन करने एवं करवाने के हेतु, आवश्यक योग्यता आदि विविध विषयों पर प्रकाश डाला है। इस अध्याय का ध्येय केश लुंचन जैसी अपूर्व क्रिया के महत्त्व एवं गूढ़ रहस्यों से परिचित करवाना है। ___ इस शोध खण्ड के सातवें अध्याय में उपस्थापना विधि का रहस्यमयी अन्वेषण प्रस्तुत किया गया है। उपस्थापना यह पंचमहाव्रत आरोपण की अति महत्त्वपूर्ण क्रिया है। इस विधान के द्वारा नूतन दीक्षित मुनि को पंच महाव्रत अंगीकार करवाए जाते हैं। प्रव्रज्या एक सदाचार समन्वित प्रक्रिया है। सम्यक चारित्र का आधार है। चारित्र धर्म का केन्द्र स्थल है। इस अनुष्ठान के द्वारा जीवन पर्यन्त के लिए सामायिक चारित्रधारी नूतन मुनि को यथोक्त तपोनुष्ठान करवाकर उसे साधुओं की मण्डली में प्रवेश दिया जाता है तथा उसे पंच महाव्रतों पर स्थापित करके श्रमण-श्रमणी संघ का स्थायी सदस्य बनाते हैं। पंच महाव्रतों का निर्दोष पालन मोक्ष का अनन्तर कारण है। इसी हेतु से यह विधि अन्तिम क्रम पर कही गई है। इस अध्याय के अन्तर्गत उपस्थापना सम्बन्धी समस्त छोटे-बड़े पक्षों का अध्ययन किया गया है। इसमें मुख्य रूप से पंचमहाव्रत एवं रात्रिभोजन त्याग पर विविध परिप्रेक्ष्यों में विशद चर्चा की गई है। इसी के साथ आधुनिक युग में पंच महाव्रत की उपादेयता, शारीरिक स्वस्थता
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy