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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में कलापक्ष ३२३ सर्वप्रथम मापके समक्ष कवि द्वारा वरिणत साङ्गरूपक का एक उदाहरण प्रस्तुत है "बका: पताकाः करिणोऽम्बुवाहाः शरा मयूरास्तडितोऽसिका हा । ढक्कानिनादस्तनितानुवादः सुधीरणं वर्षणमुज्जगाद ॥" -जयोदय, ८१६३ ____ जयकुमार पौर अर्ककीति के युद्ध का वर्णन है। यहां पर कवि ने युद्ध पर पर्वाकाल का प्रारोप किया है। पताकारूपी बगुले हैं, गजरूपी बादल हैं, वाण रूपी मयूर हैं, तलवाररूपी बिजली है पोर नगाड़ों की ध्वनिरूपी बादलों की मड़गड़ाहट है, इस प्रकार से युद्धरूपी वर्षाकाल है। प्रस्तुत श्लोक में ध्वजों, हाथियों, बारणों, तलवारों पोर नगाड़ों की प्रावाज का क्रमशः बगुलों, बादलों, मोरों, बिजली और बादलों की गर्जना से प्रभेद स्थापित करने के कारण रूपक अलङ्कार है। प्रब देखिये वसन्तत वर्णन के प्रसङ्ग में रूपक का एक उदाहरण. "मुकलपाणिपुटेन रजोऽब्जिनी हशि ददाति रुचाऽम्बुजजिद्दृशाम् । स्पलपयोजवने स्मरघूत्तंराड्ढरति तब्दयद्रविणं रसाद ॥" -वीरोदय, ६।३४ (गुलाब और कमल के पुष्पों वाले उस वन में अपनी शोभा से कमल को जीतने वाली स्त्रियों के नेत्रों में अपने मुकलित हस्त के दोने से कमलिनी पुष्पपराग रूपी धूलि डाल रही है और कामदेव रूपी धूर्तराज अवसर पाते ही उनके हृदय रूपी धन को चुरा रहा है) प्रस्तुत श्लोक में मुकुलपुट, पराग, कामदेव और हृदय का क्रमशः हाथ के दोने, धूल, धूर्तराज और धन से अभेद स्थापित किया गया है, इसलिए रूपक प्रलहार है। रूपक का एक अन्य उदाहरण प्रस्तुत है-- "ननु जरा पृतना यमभूपतेर्मम समीपमुपाश्चितुमीहते । बहुगदाधिकृतह तदग्रतः शुचिनिशानमुदेति प्रदो वत ॥" -श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, २ (अपने शिर पर सफेद बाल देखकर राबा चक्रायुध सोचता है कि अब पवश्य ही मेरे समीप यमरूपी राजा की वृद्धावस्थारूपी सेना, रोगरूपी गदामों को धारण करके प्राना चाहती है। इसलिए श्वेत केशरूपी उसका चिह्न पहले से उदित हो गया है।) प्रस्तुत श्लोक में वृद्धावस्था, यमराज, रोग और श्वेत केश का क्रमशः सेना, राजा, गदा और चिह्न से अभेद स्थापित करने के कारण साङ्गरूपक
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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