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________________ २३२ महाकविमानसागर के काव्य-एक अध्ययन होता है । स्वर्ग से भी अधिक सुन्दर स्तबकगुच्छ नगर की स्थिति समुद्र के किनारे थी, उस नगर में एक हजार तोरणद्वार थे; पोर बीस लाख योदा हर समय सन्नद रहते थे, जिससे कोई भी अनपेक्षित व्यक्ति वहां प्रवेश नहीं पा सकता था।' चापुर वर्णन ___ जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र में स्वर्ग को तिरस्कृत करने वाले सुन्दर चक्रपुर की अवस्थिति है । उस नगर का प्रत्येक निवासी अपनी उदारता से देवतुल्य, बुद्धियुक्त होने से प्रत्येक स्त्री दिव्याङ्गनातुल्य, राजा प्रजावत्सल भोर इन्द्रतुल्य है। वहां के लोग धर्मसम्मत भोग करते हैं । धर्म के सफल प्रयोग, गुणों की संगति से होते हैं । वहाँ शिष्टाचार जानने वाली स्त्रियां निवास करती हैं । सन्तति माज्ञाकारिणी होती है। वहां कोई भी मद्यप, मांसभक्षी और ठग नहीं है। भिक्षावृत्ति, राजकीयकर्मचारियों द्वारा शोषण, वियोगजन्य दुःख, निष्फल प्रयत्न इत्यादि का उस नगर में प्रभाव है । वहां के स्त्री पुरुषों को रोग-शोक का अनुभव नहीं होता। भोगविलास में रत होने पर भी, वहाँ पर किसी का भाचरण निन्दनीय नहीं है । वहाँ के लोग मालस्य से रहित हैं; और अपनी प्राजीविका के लिए कुछ न कुछ कार्य अवश्य करते हैं। हस्तिनापुरवर्णन हस्तिनापुर जयोदय के चरित नायक जयकुमार को राजधानी है । जिस समय जयकुमार सुलोचना के साथ हस्तिनापुर में पहुँचते हैं, उस समय वह गले में लटकती हुई माला वाले हाथियों से युक्त उस नगरी को विरह के कारण खुले बालों वाली स्त्री के समान देखते हैं। वायु के वेग से हिलती हुई पताकामों वाली वह नगरी, प्रथम बार देखे गये के समान जयकुमार का स्वागत कर रही थी। वह नगरी अनेक रक्षकों से युक्त थी। वहां के घोड़े धूलि से धूसरित मोर पसीने से युक्त थे । पवन के वेग से उड़ी हुई धूलि से धूसरित हो जाने की शङ्का से सारथी अपने श्रेष्ठ रथ के चंदोवे को मार्ग में ही साफ कर रहा था। x x x स्त्रियां अपने हृदय में जलती हुई कामाग्नि को, अांचल से हवा करती हुई बढ़ा रही थीं। + + + जैसे ही राजा ने अपनी सेनासहित नगर में प्रवेश किया, वैसे ही लोग अपने अपने स्थानों में माकर राजा को प्रणाम करने लगे। दोनों पोर से एकत्र होते हुए नगर वासियों का समूह, चलती हुई सेना का अनुकरण कर रहा था । वणिग्जन बाजार में रखे हुये मणियों के ढेर को उपहार के रूप में दे रहे थे। जयकुमार की वधू सुलोचना के मुख-चन्द्र को देखने के लिए उत्सुक पुरवासिनी सुन्दर स्त्रियों से वह नगरी चन्द्रशाला के समान लग रही थी। सुलोचना १. श्रीसमुद्रवत्तचरित्र, २०१९-२० २. वही, ११-८
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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