SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ अपभ्रंश-साहित्य छन्दकवि ने ग्रन्थ में अनेक प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है । केशवदास की रामचन्द्रिका और इस काव्य में प्रयुक्त अनेक छन्द समान हैं। छन्दों की विविधता भी दोनों काव्यों में समान रूप से दृष्टिगत होती है। इस काव्य में वर्णिक और मात्रिक दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है किन्तु प्रधानता मात्रिक छन्दों की ही है। आठवीं सन्धि के छठे कडवक के आरम्भ में कवि ने आठ दोहों (दोहाष्टकं) के बाद कडवक प्रारम्भ किया है । उदाहरण स्वरूप दो दोहे देखिये-- जाणामि हउं उवहाणइं, किं तुहूं चवइ बहुतु । अंविए को वि ण पंडियउ, पर उवएस कहंतु ॥२ इय णिसुणेवि णु पंडियए, तो वुत्तउ विहसेवि । खीलय कारणे देवउलु, गउ जुत्तउ णासेवि ॥८ वणिक वृत्तों में भी नवीनता उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है । निम्नलिखित मालिनी वृत देखिये खलयण सिर सूलं, सज्जणाणंद मूलं । पसरह अविरोलं, मागहाणं सुरोलं। सिरि णविय जिणिदो, देइ वायं वणिंदो। वसु हय जुइ जुत्तो, मालिणी छंदु वुत्तो ॥ ३.४ प्रत्येक चरण में यति के स्थान पर और चरणान्त में अनुप्रास (तुक) के प्रयोग द्वारा चार चरणों की मालिनी आठ चरणों वाली प्रतीत होती है।' सकल विधि निधान काव्य यह भी नयनंदी का लिखा हुआ अप्रकाशित ग्रंथ है । इसकी हस्तलिखित . प्रति आमेर शास्त्र भंडार में उपलब्ध है (प्र० सं० पृष्ठ १८१ तथा २८५) । १. कवि ने निम्नलिखित वणिक और मात्रिक छन्दों का प्रयोग किया है पादाकुलक, रमणी, मत्तमायंग, कामवाण, दुवई-मयण विलासा, भुजंग प्रयात, प्रमाणिका, तोडणऊ, मंदाक्रान्ता, शार्दूल विक्रीडित, मालिनी, दोषय, समानिका, मयण, त्रिभंगिका (मंजरी, खंडियं और गाथा का मिश्रण), आनंद, द्विभंगिका (दुवई और गाही का मिश्रण), आरणाल, तोमर, मंदयाति, अमरपुरसुन्दरी मदनावतार, मागहणक्कुडिया, शाल भंजिका, विलासिनी, उविंद वज्जा, इंडवज्जा, अथवा अखीणइ, उवजाइ (उपजाति), वसंत चच्चर, वंसत्थ, उव्वसी, सारीय, चंडवाल, भ्रमरपद, आवली, चंद्रलेखा, वस्तु, णिसेणी, लता कुसुम, रचिता, कुवलयमालिनी मणिशेखर, दोहा, गाथा, पद्धडिया, उहिया, मोत्तिय दाम, तोणउ, पंच-चामर, सग्गिणी, मंदारदाम, माणिणी, पद्धडिया के निम्नलिखित भेद रयणमाल, चित्तलेह, चंदलेह, पारंदिया, रयडा इत्यादि ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy