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________________ अपभ्रंश-महाकाव्य फणि फुप्फुयंतु __कवि ने जहां पर भी वर्णनों में प्राचीन परंपरा का आश्रय लिया है वहां उसकी शैली समस्त, अलंकृत और कुछ क्लिष्ट हो गई है । जहाँ पर परंपरा को छोड़ स्वतन्त्र शैली का प्रयोग किया है वहाँ भाषा अधिक स्पष्ट, सरल और प्रवाहमयी दिखाई देती है। ऐसे स्थलों पर छोटे-छोटे प्रभावोत्पादक वाक्यों द्वारा कवि की भाषा अधिक बलवती हो गई है। प्राचीन परम्परा पर आश्रित भाषा के उदाहरण ऊपर दिये हुए अनेक वर्णनों में देखे जा सकते हैं। प्राचीन परंपरा से उन्मुक्त स्वतन्त्र भाषा शैली का उदाहरण निम्नलिखित उद्धरण में देखिये पत्थरेण कि मेरु दलिज्जइ, किं खरेण मायंगु खलिज्जइ । खज्जोएं रवि णित्तेइज्जइ, किं घट्टेण जलहि सोसिज्जद । गोप्पएण कि गह माणिज्जइ, अण्णाणे कि जिणु जाणिज्जइ । वायसेण किं गरुडु णिरुज्मइ, णवकमलेण कुलिसु कि विज्मइ । करिणा कि मयारि मारिज्जइ, किं वसहेण वग्घु दारिज्जइ । कि हंसें ससंकु धवलिज्जइ, किं मणुएण कालु कवलिज्जइ। १६.२०.३-८ अर्थात् क्या पत्थर से मेरु दलित किया जा सकता है ? क्या गधे से हाथी पीडित किया जा सकता है ? क्या जुगनू से सूर्य निस्तेज किया जा सकता है ? क्या चूंट चूंट से समुद्र सुखाया जा सकता है ? क्या गोपद आकाश की समता कर सकता है ? अज्ञान से क्या जिन भगवान् का ज्ञान हो सकता है ? क्या कौआ गरुड़ को बाधा पहुंचा सकता है ? एक नव कमल से क्या कुलिश विद्ध किया जा सकता है ? हाथी से क्या सिंह मारा जा सकता है ? वृषभ से क्या व्याघ्र विदीर्ण किया जा सकता है ? इत्यादि। __इस प्रकार की शैली में श्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से भी भाषा की सरलता और गति मष्ट नहीं हुई खग्गे मेहें कि णिज्जलेण, तरुणा सरेण कि णिप्फलेण। मेहें कामें कि णिहवेण, मुणिणा कुलेण कि णित्तवेण । कव्वें गडेण कि णीरसेण, रज्जें भोज्जे किं पर वसेण । ५७. ७. १-३ अर्थात् पानी रहित मेघ से और खड़ग से क्या लाभ ? फल रहित वृक्ष और वाण से क्या प्रयोजन ? द्रवित न होने वाला मेघ और काम व्यर्थ है। तप रहित मुनि गौर कुल किस काम का? नीरस काव्य और नट से क्या लाभ ? पराधीन राज्य और भोजन से क्या ? ग्रन्थ की भाषा में अनेक शब्द रूप ऐसे हैं जो हिन्दी के बहुत निकट हैं।' - - १. उदाहरण के लिए कुछ शब्द नीचे दिये जाते हैं भवर्स अवश्य १५. २२. १७ । कप्पड-कपड़ा . ३६.८.९
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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