SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. प्रमाणे अनुक्रमे काळ आवे छे एम पण नथी. गमे ते वखते ते आवीने लइ जाय छे. माटेज विचक्षण पुरुषो प्रमाद विना आत्मकल्याणने आराधे छे. शिक्षापाठ १९संसारनेचार उपमाभाग १. संसारने महा तत्वज्ञानीओ एक समुद्रनी उपमा पण आषे छे. संसाररुपी समुद्र अनंत अने अपार छे. अहो लोको ! एनो पार पामवा पुरुषार्थनो उपयोग करो ! उपयोग करो !! आम एमनां स्थळे स्थळे वचनो छे. संसारने समुद्रनी उपमा छाजती पण छे. समुद्रमां जेम मोजांनी छोळो उछळ्या करे छे तेम संसारमां विषयरुपी अनेक मोजांओ उछळे छे. जळनो उपरथी जेम सपाट देखाव छे तेम संसार पण सरळ देखाव दे छे. समुद्र जेम क्यांक बहु उंडो छे, अने क्यांक भमरीओ खवरावे छे तेम संसार काम विषय प्रपंचादिकमां बहु उंडो छे. ते मोहरुपी भमरीओ खवरावे छे. थोडं जळ छतां समुद्रमा जेम उभा रहेवाथी कादवमां गुची जइए छीए तेम संसारना लेश प्रसंगमां ते तृष्णारुपी कादवमा धुंचवी दे छे. समुद्र जेम नाना प्रकारना खराबा अने तोफानथी नाव के वहाणने जोखम पहोंचाडे छे तेम स्त्रीयोरुपी खराबा अने कामरुपी तोफानथी संसार आत्माने जोखम पहोंचाडे छे. समुद्र जेम अगाध जळथी शीतळ देखातो छतां वडवानळ नामना अग्निनो तेमां वास छे तेम संसारमा मायारपी अग्नि बळ्याज करे छे. समुद्र जेम चोमासामां वधारे जळ पामीने उंडो उतरे छे तेम पापरुपी जळ पामीने संसार उंडो उतरे छे, एटले मजबुत पाया करतो जाय छे.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy