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________________ १३६ मोक्षमाला - पुस्तक बीजं. भावे निकटता आवे त्यारे सर्व सिद्धि थाय. ए द्रव्य निकटतानुं साधन सत्परमात्मतत्व, सद्गुरुतत्व अने सद्धर्मतत्व ओळखी सर्द ए छे. भावनिकटता एटले केवळ एकज रूप थवा ज्ञान, दर्शन अने चारित्र साधनरूप छे. ए चक्रथी एवी पण आशंका थाय के ज्यारे बन्ने निकट छे त्यारे शुं वाकीनां त्यागवां ? उत्तरमां कहेवानुं के जो सर्व त्यागी शकता हो तो त्यागी यो एटले मोक्षरूपज थशो. नहि तो हेय, ज्ञेय, उपादेयनो बोध ल्यो, एटले आत्मसिद्धि प्राप्त थशे. शिक्षापाठ ९४ तत्त्वावबोध भाग १३. जे जे कहेवायुं छे ते ते कंइ केवळ जैनकुळथी जन्म पामेला पुरुषने माटे नथी, परंतु सर्वने माटे छे. तेम आ पण निःशंक मानजी के जे कंइ कहेवाय छे ते अपक्षपाते अने परमार्थबुद्धिथी कहेवाय छे. तमने जे धर्मतत्व कहेवानुं छे, ते पक्षपात के स्वार्थबुद्धिथी कहेवानुं अमने कंइ प्रयोजन नथी; पक्षपात के स्वार्थथी तमने अधर्मत्व बोधी अमे अधोगतिने शा माटे साधिये ? वारंवार तमने निग्रंथनां वचनामृतो माटे कहवाय छे, तेनुं कारण ते वचनामृतो तत्वमां परिपूर्ण छे, ते छे. जिनेश्वरोने एवं कोइ पण कारण नहोतुं के ते निमित्ते तेओ मृषा के पक्षपाती बोधे; तेम एओ अज्ञानी नहता, के एथी मृषा बोधाइ जवाय. आशंका करशो के ए अज्ञानी होता एशा उपरथी जणाय ? तो तेना उत्तरमां एओना पवित्र सिद्धांतोनां रहस्यने मनन करवानुं कहिये छीए. अने एम जे करश ते तो पुनः आशंका लेश पण नहीं करे. जैनमत प्रवर्त्तका प्रति अमारे
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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