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________________ मोक्षमाला-पुस्तक बीजु. पापथी मुक्त थउं ए मारी अभिलाषा छे. आगळ करेलां पापोनो हुँ हवे पश्चाताप करूं . जेम ऊम हुं सूक्ष्म विचारथी उंडो उतरूं छु तेम तेम तमारा तत्वना चमत्कारो मारा स्वरुपनो प्रकाश करे छे. तमे निरागी, निर्विकारी, सच्चिदानंदस्वरुप, सहजानंदी, अनंतज्ञानी, अनंतदर्शी अने त्रैला त्यप्रकाशक छो. हुं मात्र मारा हितने अर्थे तमारी साक्षीए क्षमा चाहुं छु. एक पळ पण तमारां कहेलां तत्वनी शंका न थाय, तमारा कहेला रस्तामा अहोरात्र हुं रहुं एज मारी आकांक्षा अने वृत्ति थ ओ ! हे सर्वज्ञ भगवान ! तमने हुं विशेष शुं कहुं ? तमाराथी के अजाण्यु नथी. मात्र पश्चातापथी हुँ कर्मजन्य पापनी क्षमा इच्छं छ-ॐ शांतिः शांतिः शांतिः शिक्षापाठ ५७ वैराग्य ए धर्म, स्वरुप छे. एक वस्त्र लोहीनी मलि ताथी रंगायुं तेने जो लोहीथी धोइए तो ते उजळू थई शके नहिपण वधारे रंगाय छे. जो पाणीथी ए वस्त्रने धोइए तो ते मलिन्ता जवानो संभव छे. आ द्रष्टांतपरथी आत्मापर विचार लइए. अगदिकाळथी आत्मा संसाररुपी लोहीथी मलिन थयो छे. मलिन्ता प्रदेशे प्रदेशे व्यापि रही छे ! ए मलिनता आपणे विषय शृंगारथी टाळवी धारीए तो टळी शके नहि. लोहीथी जेम लोही धोव तुं नथी, तेम शृंगारथी करीने विषयजन्य आत्ममलिनता टळनार नथी ए जाणे निश्रयरुप छे. आ जगत्मां अनेक धर्ममतो चाले छे ते संबंधी अपक्षपाते विचार करतां आगळथी आटलं विचार, वश्यतुं छे के ज्यां स्त्रीलो भोगववानो उपदेश को होय, लक्ष्मीली ठानी शिक्षा आपी होय; रंग, राग गुलतान अने एशाराम करव नुं तत्व वताव्युं होय त्यां आपणा
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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