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________________ मोक्षमाला-पुस्तक बीजु. जिज्ञासुः-पण स्नान करवाथी तेओने हानि शुं छे ? सत्यः-ए तो स्थूळबुद्धिज प्रश्न छे. नहावाथी कामाग्रिनी प्रदीप्तता, व्रतनो भंग, परिणामर्नु बदलवू, असंख्याता जंतुनो विनाश, ए सघळी अशुचि उत्पन्न थाय छे अने एथी आत्मा महामलीन थाय छे. प्रथम एनो विचार करवो जोइए. जीवहिंसायुक्त शरीरनी जे मलिनता छे ते अशुचि छे. अन्य मलिनताथी तो आत्मानी उज्वळता थाय छे ए तत्वविचारे समजवायूँछे. नहावाथी व्रत भंग थइ आत्मा मलीन थाय छे, अने आत्मानी मलीनता एज अशुचि छे. जिज्ञासुः-मने तमे बहु सुंदर कारण बताव्यु. सूक्ष्म विचार करतां जिनेश्वरनां कथनथी वोध अने अत्यानंद प्राप्त थाय छे. वारु, गृहस्थाश्रमीओए सांसारिक प्रवर्तनथी थयेली अनीच्छित जीवहिंसादियुक्त एवी शरीर संबंधी अशुचि टाळवी जोइए के नहि ? __सत्यः-समजणपूर्वक अशुचि टाळवीज जोइए. जैन जेवू एके पवित्र दर्शन नथी, यथार्थ पवित्रतानो बोधक ते छेपरंतु शौचाशौचनुं स्वरुप समजवं जोइए. शिक्षापाठ ५५ मामान्य नित्यनियम. प्रभात पहेलां जागृत थइ नमस्कारमंत्रनुं स्मरण करी मनविशुद्ध करवू. पापव्यापारनी वृत्ति रोकी रात्री संबंधी थयेला दोषनुं उपयोगपूर्वक प्रतिक्रमण कर. प्रतिक्रमण कर्या पछी यथावसर भगवाननी उपासना-स्तुति तथा स्वाध्यायथी करी मनन उज्वळ कर. मात पितानो विनय करी संसारीकाममां आत्महितनो लक्ष भूलाय नहीं तेम व्यहारिक कार्यमा प्रवर्तन करवू.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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