SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म में मन का महत्त्व अत्यधिक बताया गया है और मन की भूमिका को लेकर ही विविध अनुष्ठान भी बताये गये हैं। - मानव मन की एक विशेषता है कि वह चित्रमय जगत् से अत्यन्त जुड़ा हुआ है। बालक झुले में होता है तब भी उसके मनोजगत् पर झुले पर लटकाये हुए खिलौनों का साम्राज्य होता है। थोड़ा बड़ा होता है तो खिलौने, विडियो गेम्स, टी.वी., कार्टून आदि उसके मन को प्रभावित करते हैं। युवानी में सिनेमा आदि की अत्यधिक असर होती है जो उसे गुमराह भी करती है। अतः ऐसे आलंबन की जरूरत है जो हमेशा उसे सच्चे राह पर चलने की प्रेरणा करे। - व्यक्ति अपने प्रियजन के विरह में उसका चित्र आदि अपने पास रखकर उसके वियोग के दुःख को कुछ कम करता है, वह चित्र भी उसे प्रियजन की तरह अत्यन्त प्रिय होता है। यह मानव मन का सहज स्वभाव है। स्वामी विवेकानन्दजी के प्रसंग से भी इसी बात की पुष्टि होती है। स्वामी विवेकानन्दजी का अलवर के राजा के साथ मूर्तिपूजा के विषय में वार्तालाप हुआ। राजा को मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं था वह अपनी मान्यता में दृढ़ था। स्वामीजी ने राजा के पिता की तस्वीर का अपमान किया तो वह क्रोधित हो गया। तब स्वामीजी ने समझाया कि वस्तु जड़ हो फिर भी मानव का स्वभाव है कि वह स्थापना रूप चित्र या मूर्ति में आस्था रखता ही है। इसलिए तो राष्ट्रध्वज जड़ है फिर भी प्रत्येक राष्ट्रभक्त की आस्था उसके साथ जुड़ी हुई है, उसका अपमान करना ता कानूनी अपराध भी माना गया है। आचार्य श्री स्वयं भी इस हकीकत को स्वीकारते हैं। देखें उन्हीं के शब्द : प्रश्न : तेरापंथ-भवन में अथवा तेरापंथी घरों में इतर सम्प्रदाय के साधु-साध्वी रहते हैं, तो तेरापंथी आचार्यों की फोटो को उल्टी करवा देते हैं अथवा कोई लाल कपड़ा ढकवा देते हैं। क्या यह
SR No.006232
Book TitleDravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy