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________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२|| ध्ययने ॥५५॥ प्रतिक्रमणाजथा पासादो तथा संजमो, जथा वाणिगिणी तथा साधू, जो तं सीदावेति उवेक्खति वा सो तथा अणाभागी भवति, एवं सारेति वारणायांसावरापे पायण्डितं कहति संठवति य, तेण चारितं निम्मल भवतित्ति । विषविकल द परिहरणावि छठिवहा तहेव, तत्थ दुद्धकायउदाहरण-एगो कुलपुत्तओ,तस्स दो भगिणीओ अण्णेसु मामेसु, इमस्स धीता 15 जाता, भगिणीण पुत्ता जाता, संवड्डिताणि, दोवि भगिणीओ समं चेव परियाओ आगताओ, सो भणति-दोण्ह अच्छाण कवरं पितं , वचह, पूने पेसेह, जो खेयष्णो तस्स देमित्ति, गताओ, पेसविता, दोद्दवि समा घडगा दिण्णा, जाह गोउलाओ दुई आणे,त्ति, गता, दुद्धस्स घडगा भरिता, काउडीहि सम, उच्चलिता, तत्थ दोणिण पंथा, एगो परिहारो, सो समो, बितिथी | उज्जुओ खाणुविसमबहुली, एगो उजुतेण पस्थितो, सो अक्खडितो, भिण्णा दोषि घडगा, एगो अबेण भमित्ता आगतो, सो ४ भणति,मए भणित-दुद्धं आणेहिति,न मए भणिय-लई वा चिरेण वा एहति, सो धाडितो, इतरस्स दिण्णा । एष दृष्टांतः। एवं चेव उवर्सहारो भाये होति, जथा सो कुलपुचओ तथा तित्थकरो, जथा सा दारिया तथा सिद्धी, जथा ते दारगा तथा साधू, जवा दूद्धघडगा तथा चरितं, जथा पंथा तथा दव्वखेत्तकालभाषा विसमा य समा य, एवं परिहरितवाणि कुत्सिवाणि ठाणाणि, दवं खेत् कालो भावो य। वारणावि छबिहा तहेव, तत्थ विसभोयणविकल उदाहरण-एगो य राया अण्णस्स रायाणगस्स णगररोहओ जाति, तेण ॥५५॥ 18| रायाणएण पाणियाणि विसेण भाषिताणि, सत्थो य आवासावितो, विसकर्य अण्णपाण अदूरागतं जाणिचा णासहति तरेण पोसावित-जो एत्थं पाणितं पियति फलाणि वा खाति सो मरतित्ति, अण्णाउकंठिता उ विरसपाणियाओ अरसाचिरसाणि य दीप अनुक्रम [११-३६] (61)
SR No.006204
Book TitleAagam 40 Aavashyak Choorni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages332
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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