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________________ सौभाग्य विजय जी ने वातावरण बिगाड़ दिया। उन्होंने पूरे चौमासे में जब भी मौका लगा तब तपागच्छ चारथुई वाले कोई साधु हो क्रिया पात्र अभी नहीं। किसी को शास्त्र ज्ञान नहीं । शिथिलताचारियों के नाम पर पूरे संवेगी परंपरा को दूपित करने का अनुचित प्रचार किया, यह सब तो ठीक है किन्तु जाते जाते किताब छापकर अपने भक्तों को दे गये हैं। जिस किताब में तीन थुई ही शास्त्रीय है। देव-देवियों की मान्यता शास्त्र विहीन नहों । यतियो के शिथिलाचार को आगे कर पूरी संवेगी परंपरा के अस्तित्व को ही उठाने का बालिश प्रयत्न किया है । कृपा कर आप रतलाम पधारो! आप तो बहुत दूर पधार गये । हमारे को तो आपका ही सहारा है।" पूज्य श्री ने परिस्थिति की गंभीरता समझी तत्क ल ताबड़तोड़ विहार कर पोष विद आठम लगभग रतलाम पधार गये। व्याख्यान में त्रिस्तुतिक-संप्रदाय को मान्यताओं के शास्त्र पढ़ने से अप्रमाणित सिद्ध किया। मुनि सौभाग्य विजय जी म. की हाल में छपी पुस्तक को अपूर्ण, भ्रामक-विकृत तथ्यों का पर्दाफाश किया तथा "हमारे आने की बात सुनकर तत्काल यहां से विहार कर गये । लगते हैं । यदि सत्य समझना है तो मैं तैयार हूं ? जाहिर में इस सम्बन्ध में १११
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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