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________________ द्रव्य का सदुपयोग आपके बनाये हुए ग्रंथ प्रकाशन व ज्ञानरक्षानिमित्त भंडार में किया जाय। ऐसा निश्चय कर आप की चिरस्मृति में सं. १९९५ चैत्र वदि-२ को आहोर (मारवाड़) में वर्तमानाचार्य व्याख्यान वाचस्पति पू. पा. श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज आदि मुनिमंडल ने मिलकर आप के रचित ग्रंथ प्रकाशन निमित्त 'श्री भूपेन्द्रसूरि जैन साहित्य प्रकाशक समिति' कायम की और समिति की आर्थिक व्यवस्था के लिए यहाँ के सद्गृहस्थों की एक संचालक समिति भी स्थापित की गई । समिति के ग्रंथसंशोधन तथा प्रकाशित करने का कार्य पू. पा. उपाध्यायजी श्रीमान् गुलाबविजयजी महाराज, मुनिप्रवर तपस्वी श्रीहर्षविजयजी, शान्तमूर्ति मुनिराज श्रीहंसविजयजी तथा विद्याप्रेमी मुनिश्रीकल्याणविजयजी को दिया गया । उक्त मुनिवरों ने इस ग्रंथ का संशोधन कर मूल ग्रंथ के विषय व संबन्ध आदि में यथोचित सुधाराकार ग्रन्थ को उपादेय बनाने में यथाशक्ति अच्छा प्रयत्न किया है । I ग्रंथान्तर्गत धर्मवर्ग में - देव, गुरु, धर्म का स्वरूप बतलाकर, ज्ञान, मनुष्य जन्मादि ३२ विषय एवं ४८ कथाएँ । अर्थवर्ग में - लक्ष्मी आदि २१ विषय, २२ कथा, कामवर्ग में - कामादि ७ विषय, १३ कथा, और मोक्षवर्ग में- मोक्षादि १० विषय एवं १६ कथाओं का समावेश है। विशेष जिज्ञासुओं को ग्रंथ का विषयानुक्रम अवलोकन करने से स्पष्ट मालूम हो सकेगा। अन्त में ग्रंथकर्ता ने चारों वर्ग का उपसंहार भलीभांति से कर दिखाया है। ग्रंथ के अन्त में मूलकर्ता की प्रशस्ति के साथ २ संस्कृत अनुवादक की भी प्रशस्ति दी गयी है । आशा है कि गुणानुरागी धर्ममार्गानुगामी विद्वज्जन इस ग्रंथ के रचयिता के अमूल्य परिश्रम का यथार्थ सत्कार कर ग्रंथ की उपादेयता को और भी बढ़ायेगें । निवेदिका :- श्री भूपेन्द्रसूरि जैन साहित्य संचालक समिति, आहोर (राज.) 8
SR No.006195
Book TitleSukta Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri and Others
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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