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________________ ४० जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन अक्षमाला से विवाह करने पर जयकुमार से मेरी मित्रता जीवन पर्यन्त रहेगी । इस प्रकार अर्ककीर्ति स्वयं अनेक प्रकार से विचार करता है और अक्षमाला से विवाह करने के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। काशी नरेश के प्रयास से जयकुमार और अर्ककीर्ति में पुनः मित्रता होती है । जयकुमार के मधुर वचनों से अर्ककीर्ति का मनोमालिन्य पूर्णरूपेण धुल जाता है । अनन्तर सभी “यतिचरित्र" नामक जिनालय में जाते हैं और भगवान् का अभिषेक, पूजन करते हैं। पूजन-भक्ति का यह कार्यक्रम लगातार आठ दिन तक चलता है । भगवान् की आराधना के बाद अकम्पन अपने वचन के अनुसार अपनी द्वितीय पुत्री अक्षमाला का विवाह अर्ककीर्ति के साथ कर देते हैं। अक्षमाला के विवाह कार्य से निवृत्त होकर अकम्पन अपने सुमुख दूत को भरत चक्रवर्ती के समीप भेजते हैं । दूत चक्रवर्ती को नमन कर काशी नगरी का सारा वृत्तान्त विनयपूर्वक विनम्र शब्दों में कहता है । भरत चक्रवर्ती स्वयंवर विवाह परम्परा के प्रवर्तक राजा अकम्पन एवं जयकुमार की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । वे अपने पुत्र द्वारा जयकुमार के विरोध को अनुचित बतलाते हैं । दूत सम्राट् के वचनों से सन्तुष्ट होकर वापिस आ जाता है । वह चक्रवर्ती से हुई वार्ता द्वारा अपने स्वामी को प्रसन्न करता है । दशम सर्ग ____ काशी नरेश ज्योतिषियों से शुभ मुहूर्त निकलवाकर पुत्री सुलोचना के विवाह की तैयारियाँ प्रारम्भ करते हैं । वे दूत द्वारा वर जयकुमार को राजभवन में आमन्त्रित करते हैं। काशी नगरी की अद्भुत सज्जा की जाती है । घन, सुषिर, आनद्ध, भेरी, वीणा, झांझ आदि विविध वाद्य की मधुर ध्वनियाँ ब्रह्माण्ड में फैल जाती हैं । महिलाएँ मंगलगीत गाती हैं । सौभाग्यवती नारियाँ एवं सखियाँ सुलोचना को स्नान कराती हैं एवं वस्त्राभूषणों से अलंकृत करती हैं। - वधु के समान ही वर को भी वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया जाता है । वरयात्रा में जयकुमार साक्षात् इन्द्र ही प्रतीत होते हैं । प्रजाजन बारात की शोभा देखने के लिए अपने गृहों से निकलकर राजपथ पर आ जाते हैं । राज द्वार पर पहुँचते ही कन्या पक्ष के बान्धवजन वर को सम्मानपूर्वक विवाह मण्डप में ले जाते हैं । अनन्तर वधू सुलोचना भी सखियों के साथ विवाह मण्डप में आती है ।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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