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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन १७ एक बार वसन्त ऋतु में सभी नगर निवासी वनक्रीड़ा के लिये जाते हैं । रानी अभयमती भी अपनी धाय और राजपुरोहित की पत्नी कपिला के साथ वनक्रीड़ा के लिए जाती है । व ' में एक सुन्दर बालक के साथ सुदर्शन की पत्नी मनोरमा को देखती है । रानी, कपिला से उसके विषय में पूछती है तब कपिला तिरस्कार के साथ कहती है - "कहीं नपुंसक के भी पुत्र होते हैं ?" रानी के पूछने पर कपिला आप बीती कहानी रानी को सुना देती है । हँसते हुए रानी कहती है अरी कपिले, सुदर्शन ने तुझे मूर्ख बनाया है । तब अपनी झेंप मिटाती हुई कपिला बोली यदि ऐसी बात है तो आप सुदर्शन को अपने वश में कर चतुराई का परिचय दीजिये । रानी उसकी बात स्वीकार कर लेती है । वनक्रीड़ा से वापिस आकर रानी अपना अभिप्राय पंडिता धाय से कहती है । धाय रानी को बहुत समझाती है पर वह अपनी जिद पर अड़ जाती है । अन्त में धाय मनुष्य के आकार के मिट्टी के पुतले बनवाती है । रात्रि में एक पुतले को वस्त्र से ढककर राजभवन में ले जाती है । वह द्वारपाल के रोकने पर भी नहीं रुकती । द्वारपाल का धक्का खाकर पुतले को जमीन पर पटक कर रोने लगती है और कहती है - अब महारानी पुतले के दर्शन किये बिना पारणा कैसे करेंगी ? उसकी बात सुनकर भयभीत द्वारपाल अपनी भूल की क्षमा माँगता है । अपना मार्ग निर्विघ्न समझकर वह धाय प्रतिदिन रात्रि में एक पुतला राजभवन में लाती है । आठवें दिन वह साक्षात् सुदर्शन सेठ को श्मशान में ध्यान करते समय अपनी पीठ पर लाद कर और वस्त्र से ढककर रानी के महल में ले आती है। रानी सुदर्शन को देखकर प्रसन्न होती है। वह रात भर सुदर्शन को चरित्र से विचलित करने के अनेक प्रयल करती है । पर वह पाषाण मूर्ति के समान अचल रहता है। सुबह होने पर अपने कलंकित होने के भय से रानी सुदर्शन पर अपने सतीत्व हरण के प्रयल का आरोप लगा कर बन्दी बनवा देती है । राजा सुदर्शन को प्राणदण्ड की आज्ञा देते हैं। चाण्डाल सुदर्शन को श्मसान में ले जाकर जैसे ही उन पर तलवार का प्रहार करता है वह उनके गले में पुष्पहार के रूप में परिणत हो जाती है । देवगण सुदर्शन के शीलव्रत की प्रशंसा करते हुए पुष्पवर्षा करते हैं । यह सुनकर राजा सुदर्शन के पास आकर अपनी भूल की क्षमा माँगता है और उसे अपना राज्य भेंट करता है । तब सुदर्शन कहता है - राजन् ! इसमें आपका दोष नहीं है। यह मेरे पूर्वकृत कर्म का फल है । मैंने पंडिता धाय के द्वारा राजमहल में लाये जाते समय प्रतिज्ञा कर ली थी कि यदि मैं इस विपत्ति से बच गया तो मुनिदीक्षा ग्रहण कर लूंगा । अतः राज्य स्वीकार करने में असमर्थ हूँ । सुदर्शन मुनिदीक्षा ग्रहण कर लेता है । उसकी पली मनोरमा भी आर्यिका बन जाती है।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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