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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन संयम पालन में समर्थ पाया तब सन् १९५७ (विक्रम संवत् २०१४) में खानियाँ ( जयपुर ) में आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज से प्रथम मुनिशिष्य के रूप में दीक्षा ग्रहण की और मुनि श्री ज्ञानसागर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए । ' इस समय भी मुनि श्री की अध्ययन के प्रति रुचि चरमसीमा पर थी । अतएव वे संघस्थ ब्रह्मचारी, व्रतियों एवं क्षुल्लक आदि को ग्रन्थ पढ़ाते थे । अध्यापन के प्रति रुचि देखकर सहज ही उनको संघ का उपाध्याय बना दिया गया । वयोवृद्ध होते हुए भी धर्मप्रभावना हेतु उन्होंने राजस्थान में बिहार किया। वहाँ नगर - नगर भ्रमण कर धर्मोपदेश दिया । उनके प्रवचनों से प्रभावित होकर अनेक लोगों के . जीवन में धर्म का प्रवेश हुआ । ·८ सन् १९६५ में मुनि श्री ज्ञानसागर जी ने अजमेर नगर में चातुर्मास किया । यहीं पर जयोदय की स्वोपज्ञ टीका लिखी । ३ तत्पश्चात् बिहार करते हुए वे व्यावर पहुँचे। उनके आगमन से वहाँ की जनता में हर्ष की लहर दौड़ गई। समाज के आग्रह पर तीन मास तक व्यावर रहे। यहीं पर पं० हीरालाल जी सिद्धान्त शास्त्री के प्रयत्नों से "मुनि श्री ज्ञानसागर ग्रन्थमाला” की स्थापना हुई और मुनि श्री द्वारा रचित दयोदय, वीरोदय, जयोदय आदि काव्य ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ । आचार्य श्री ज्ञानसागर मुनि महाराज के द्वारा जयोदय महाकाव्य का टीका सहित संशोधन राजस्थान प्रान्त के मदनगंज किशनगढ़ नगर में स्थित चन्द्रप्रभ जिनालय में कार्तिक शुक्ल तृतीया वि. सं. २०२८ शुक्रवार को किया था । शिष्यवृन्द मुनि श्री के अगाध ज्ञान एवं प्रखर तप से प्रभावित होकर अनेक आत्मार्थियों ने उनका शिष्यत्व प्राप्त किया और मनुष्य पर्याय को सफल बनाया । उनके प्रमुख शिष्यों के नाम हैं -- मुनि श्री विद्यासागर जी मुनि श्री विवेकसागर जी, ऐलक श्री सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक श्री सुखसागर जी, क्षुल्लक श्री आदिसागर जी, क्षुल्लक श्री विजयसागर जी, क्षुल्लक सम्भवसागर जी तथा क्षुल्लक श्री स्वरूपानन्द जी । इनमें आचार्य श्री विद्यासागर जी वर्तमान युग के सर्वाधिक लब्ध ख्यात मुनि हैं। आपने अपने गुरु के ही सदृश्य "मूक माटी" महाकाव्य, नर्मदा का नरम कंकर, तोता क्यों रोता ? डूबो मत / लगाओ डुबकी, काव्य श्रमण शतक, भावना शतक, निरञ्जन शतक, " परीषहजय शतक, सुनीति शतक आदि अनेक संस्कृत एवं हिन्दी शतकों तथा विभिन्न साहित्य का सृजन किया है एवं उसी में रत हैं। १. (अ) डॉ. रतनचन्द्र जैन, आचार्य श्री ज्ञानसागरजी का जीवन वृत्तांत, कर्तव्य पथ प्रदर्शन, पृ. ५ (ब) जयोदय पूर्वार्ध, ग्रन्थकर्ता का परिचय, पृष्ठ १३ (स) आचार्य ज्ञानसागर का १२वाँ समाधि दिवस, पृ. ६ २. वीरोदय मासिक पृष्ठ - 3 ३. बाहुबली सन्देश, पृष्ठ - ३५
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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