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________________ xv सम्बन्धित अनेक पुस्तकें निजी पुस्तकालय से अध्ययन हेतु प्रदान की । इतना ही नहीं, उन्होंने मेरे भोपाल प्रवास में अपने घर में आवास, भोजन आदि की सुविधायें उपलब्ध कराके मेरे मार्ग की बाधायें दूर की हैं । मुझे उनसे निरन्तर पितृवत् स्नेह प्राप्त हुआ है । माननीय डॉ. साहब के योग्य निर्देशन के बिना यह कार्य असम्भव था । मैं उनके उपकार को कभी नहीं भूल सकती । परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी एवं उनके संघ के प्रति मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिनकी कृपा से जयोदय महाकाव्य के उत्तरार्ध की स्वोपज्ञ टीका सहित पाण्डुलिपि तथा 'मुनिमनोरञ्जनाशीति' और 'ऋषि कैसा होता है' इन दो मुक्तक काव्यों की पाण्डुलिपिया उपलब्ध हो सकीं । आचार्य श्री ज्ञानसागरजी के जीवन से सम्बन्धित अनेक जानकारियाँ तथा विविध पत्र-पत्रिकाएँ एवं सुझाव भी उनसे प्राप्त हुए हैं जिससे मेरा कार्य सुकर हुआ है । मैं आचार्य श्री विद्यासागरजी एवं उनके संघस्य साधुओं से शुभाशीर्वाद प्राप्त कर धन्य हुई हूँ। शा० स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दमोह में संस्कृत के विभागाध्यक्ष तथा सम्प्रति सचिव म०प्र० संस्कृत अकादमी, भोपाल पितृकल्प डॉ० भागचन्दजी 'भागेन्दु' मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं। उन्होंने ही मेरे मन में शोधकार्य की भूख जगाई और जयोदय महाकाव्य पर शोध करने का सुझाव दिया | उनके प्रोत्साहन और परामर्श ने मेरा मार्ग प्रशस्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है । में उनकी चिर ऋणी हूँ। ब्रह्मचारी सुमनकुमारजी, वर्तमान में १०५ ऐलक श्री सिद्धान्तसागरजी से विश्वलोचनकोश एवं उनके उपयोगी सुझाव प्राप्त कर मैं लाभान्वित हुई हूँ। ब्रह्मचारिणी लक्ष्मी बहन, विदिशा एवं सागर निवासी भाई श्री जिनेन्द्रजी ने महाकवि ज्ञानसागरजी रचित साहित्य उपलब्ध कराकर मेरी बड़ी सहायता की है। इन महानुभावों के प्रति मैं कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। प्रस्तुत शोधकार्य के समय पिता श्री स्व: पं. ज्ञानचन्द्रजी जैन 'स्वतंत्र' से हर सम्भव सहायता मिली है । उनके प्रति मैं क्या आभार व्यक्ति कर सकती हूँ। मेरे अनुज चि. राकेश जैन (इंजीनियर) ने तन-मन-धन से सहयोग दिया है । मैं उनके उत्तरोत्तर उत्कर्ष की कामना करती हूँ। जैनविधा शोध संस्थान, श्री महावीरजी (राज०) को मैं विस्मृत नहीं कर सकती, जहाँ मुझे अध्ययन, आवास, भोजन आदि की सभी सुविधाएं निःशुल्क प्राप्त हुई हैं । वहाँ के निदेशक, पुस्तकालयाध्यक्ष एवं सभी कार्यकर्ताओं की अत्यन्त आभारी हूँ। डॉ. श्रीमती आशालता मलैया, अध्यक्षा - संस्कृत विभाग, शासकीय कन्या महाविद्यालय सागर का भी मुझे मार्गदर्शन एवं सहयोग प्राप्त हुआ है । उनके प्रति मैं आभार व्यक्त करती हूँ।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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